Book Title: Agam 32 Prakirnaka 09 Devendrastava Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इकाइ विजुयाए जंबुद्दीवं हरी पकासिज्जा। तं चेव सभइरेगं हरिस्सहे होइ बोद्धव्वं ॥१॥ इकाइ अग्गिजालाइ जंबुद्दीवं डहिज|| अग्गिसिहोतं चेव समइरेगं माणवर होई बोद्धव्यं॥२॥ तिरियं तु असंखिज्जा दीवसमुद्दा सएहिं रुवेहिं अवगाढा उ करिजा सुंदरि! एएसिंएगयरो ॥३॥५भू अन्नयरो इंदो जंबुद्दीवं तु वामहत्थेण! छत्तं जहा धरिज्जा अन्नयओ मंदरं चित्तुं ॥४॥जंबुद्दीवं काऊण छत्तयं भंदरं व से दंड। प्रभु अन्नयरो इंदो एसो तेसिं बलविसेसो ॥५॥ एसा भवणवईणं भवणठिई वन्निया समासेणी सुण वाणमंतराणं भवणवईआणुपुवीए ॥६॥ पिसाय भूया जक्खा य रक्खसा किन्नरा य किंपुरिसा।महोरगा य गंधव्वा अढविहा वाणमंतरिया॥७॥ एए 3 समासेणं कहिया भे वाणमंतरा देवा। पत्तेयंपिय वुच्छं सोलस इंदे महिड्डीए ॥८॥काले य महाकाले सुरुवपडिरुव पुन्नभद्दे यो अभरवइ माणभद्दे भीमे य तहा महाभीमे ॥९॥ किन्नर किंपुरिसे खलु सप्युरिसे खलु तहा महापुरिसे। अइकाय महाकाए गीयरई चेव गीयजसे॥ ७०॥सन्निहिए समाणे धाइ विधाए इसीय इसिपाले इस्सर महिस्सरे या हवइ सुवच्छे विसाले य॥१॥हासे हासरईविय सेए य तह। भवे महासेए। पयए पययावईविय नेयव्वा आणुपुव्वी ॥२॥उड्ढमहे तिरियमि य वसहिं ओविंति वंतरा देवा। भवणा पुण ण्ह रयणप्यभाइ उवरिल्लए कंडे ॥३॥ इक्केचम्मि य जुयले नियमा भवणा वरा असंखिज्जासंखिज्जवित्थडा पुण नवरं एतत्थ नाणत्तं ॥ ४॥ जंबुद्दीवसमा खलु उक्कोसेणं भवंति भवणवा खुद्दा खित्तसमाविय विदेहसमया य मज्झिमया ॥ ५॥ तहिं देवा वंतरिया व्रतरु० निच्चसुहिया०॥६॥काले सुरुव पुण्णे भीमे तह किन्नरे यसप्युरिसे। अइकाए गीयरई अद्वेव य हंति दाहिणओ॥७॥ ॥ श्री देवेन्द्रस्तव सूत्र॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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