Book Title: Agam 32 Prakirnaka 09 Devendrastava Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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लोयम्गे य पइट्ठिया। इहं बोदिं चइत्ताणं, तत्थ गंतूण सिझई॥१॥जं संठाणं तु इहं भवं चयंतस्स चरमसमयम्मिा आसीय पएसधणं तं संठाणं तहिं तस्स॥२॥दीहं वा हस्संवा जंसंठाणं हविज्ज चरमभवेतत्तो तिभागहीणा सिद्धाणोगाहणा भणिया ॥३॥तिन्नि सया छासट्टा धणुत्तिभागोय होइ बोद्धव्यो। एसा खलु सिद्धाणं उक्कोसोगाहणा भणिया॥४॥चत्तारि य रयणीओ रयणि तिभागूणिया य बोद्धव्वा एसा खलु सिद्धाणं मझिमओगाहणा भणिया॥५॥इक्का य होइ रयणी अद्वैव य अंगुलाई साहीया। एसा खलु सिद्धाणं जहण्णओगाहा भणिया ॥६॥ओगाहणाइ सिद्धा भवत्तिभागेण हुंति परिहीणा संठाणमणित्थंथं जरामरणविष्यमुक्काणं॥७॥ जत्थ् य एगो सिद्धो तत्थ अणंता भवक्खयविभुक्का अन्नुन्नसमोगाढा पुढा सव्वे अलोगंते॥८॥असरीराजीवधा उवउत्ता दसणेय नाणे यो सागारमणागारं लक्खणमेयं तु सिद्धाणं॥ ९॥ फुसइ अणंते सिद्धे सव्वपएसेहिं णियमसो सिद्धो। तेवि असंखिजगुणा देसपएसेहिं जे पुढ॥ २९०॥ केवलनाणुवउत्ता जाणंती सव्वभावगुणभावे। पासंति सव्वओखलु केवलदिट्ठीहऽणताहि ॥१॥नाणंमि दसणम्भिय इत्तो एगयरयभ्भि उवउत्ता।सव्वस्स केवलिस्सा जुगवं दो नत्थि उवओगा॥२॥सुरगणसुहं समत्तं सव्वद्धापिंडियं अणंतगुणी नवि पावइ मुत्तिसुहं णताहिं गवहिं॥३॥ नवि अस्थि माणुसाणं तं सुक्खं नविय सव्वदेवाणी जं सिद्धाणं सुक्खं अव्वाबाहं उवग्याणं ॥ ४॥ सिद्धस्स सुहा रासी सव्वद्धापिंडिओ जइ हविजाणंतगुणवनभईओ सव्वागासे न माइज्जा॥५॥जह नाम कोइ | मिच्छो नयरगुणे बहुविहे वियाणंतोन चएइ परिकहेउं उवमाए तहिं असंतीए॥६॥असिद्धाणं मुक्खं अणोवम नत्थि तस्स ओवम्मी ॥श्री देवेन्द्रस्तव सूत्र॥
| पू. सागरजी म. संशोधित
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