Book Title: Agam 32 Prakirnaka 09 Devendrastava Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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| किंचिविसेसेणित्तो सारिक्खभिणं सुणह वुच्छं ॥ ७ ॥ जह सव्वकामगुणियं पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोई । तण्हाछुहाविभुक्को अच्छिन । | जहा अभियतित्तो ॥ ८ ॥ इय सव्वकालतित्ता अउलं निव्वाणमुवगया सिद्धा । सासयमव्वाबाहं चिट्ठति सुही सुहं पत्ता ॥ ९ ॥ सिद्धत्तिय बुद्धत्ति य पारगयत्ति य परंपरगयत्ति। उम्मुक्ककम्मकवया अजरा अमरा असंगा य ॥ ३०० ॥ नि (प्र० वु ) च्छिन्नसव्वदुक्खा जाइजरामरणबंधणाविमुक्का । सासयमव्वाबाहं अणुहवंति सुहं सया कालं ॥ १ ॥ सुरगणइड्डिसमग्गा सव्वद्धापिंडिया अनंतगुणा । नवि पावइ जिणइड्डुिं णंतेहिवि वग्गवग्गूहिं ॥ २ ॥ भवणवइवाणमंतर जोइसवासी विमाणवासी य। सव्विड्डी परियरिया अरहंते वंदया हुति ॥ ३ ॥ भवणवइवाणमंतर जोइसवासी विमाणवासी यो इसिवालियम्यमहिया करिति महिमं जिणवराणं ॥ ४ ॥ इसिवालियस्स भद्दं सुरवरथयकारयस्स वीरस्स जेहिं सया थुव्वंता सव्वे इंदा पवरकित्ती ॥ ५ ॥ इसिवा० । तेसिं सुरासुरगुरू सिद्धा सिद्धिं उवणमंतु ॥ ६ ॥ भोमेज्जवणयराणं जोइसियाणं विमाणवासीणं । दइए देवनिकायाण थवो सहस्सं (प्र० समत्तो ) अप रिसेसो ॥ ३०७ ॥ २०| १२३५ ॥ देविंदत्थयपइण्णं समत्तं ९ ॥ प्रभु महावीर स्वामीनीपट्ट परंपरानुसार कोटीगण-वैरी शाखा- चान्द्रकुल प्रचंड प्रतिभा संपन्न, वादी विजेता परमोपास्य पू. मुनि श्री झवेरसागरजी म.सा. शिष्य बहुश्रुतोपासक-सैलाना नरेश प्रतिबोधक-देवसूर तपागच्छ-समाचारी संरक्षक-आगमोध्धारक पूज्यपाद आचार्य देवेश श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी महाराजा शिष्य प्रौढ़ प्रतापी, सिध्धचक्र आराधक समाज संस्थापक पूज्यपाद आचार्य श्री चन्द्रसागर सूरीश्वरजी म.सा. शिष्य चारित्र चूडामणी, हास्यविजेता- मालवोध्धारक महोपाध्याय श्री
॥ श्री देवेन्द्रस्तव सूत्रं ॥
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पू. सागरजी म. संशोधित
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