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आगम सूत्र २९, पयन्नासूत्र-६, 'संस्तारक' सूत्र-३३
लेकिन जो तीन तरह के गारव से उन्मत्त होकर गुरु के पास से सरलता से पाप की आलोचना लेने के लिए तैयार नहीं है; यह साधु संथारा को अपनाए तो वो संथारा अविशुद्ध है । सूत्र - ३४
जो आलोचना के योग्य है और गुरु के पास से निर्मलभाव से आलोचना लेकर संथारा अपनाते हैं, वो संथारा सुविशुद्ध माना जाता है । सूत्र - ३५
शंका आदि दूषण से जिसका सम्यग्दर्शनरूप रत्न मलिन है, और जो शिथिलता से चारित्र का पालन करके श्रमणत्व का निर्वाह करते हैं, उस साधु के संथारा की आराधना शुद्ध नहीं-अविशुद्ध है। सूत्र-३६, ३७
जो महानुभाव साधु का सम्यग् दर्शनगुण अति निर्मल है, और जो निरतिचाररूप से संयमधर्म का पालन करके अपने साधुपन का निर्वाह करते हैं । तथा
राग और द्वेष रहित और फिर मन, वचन और काया के अशुभ योग से आत्मा का जतन करनेवाले और तीन तरह के शल्य और आठ जाति के मद से मुक्त ऐसा पुण्यवान साधु संथारा पर आरूढ़ होता है। सूत्र-३८
तीन गारव से रहित, तीन तरह के पाप दंड़ का त्याग करनेवाले, इस कारण से जगत में किसकी कीर्ति फैली है, ऐसे श्रमण महात्मा संथारा पर आरूढ़ होता है। सूत्र - ३९
क्रोध, मान आदि चारों तरह के कषाय का नाश करनेवाला, चारों विकथा के पाप से सदा मुक्त रहनेवाले ऐसे साधु महात्मा संथारा को अपनाते हैं, उन सर्व का संथारा सुविशुद्ध है। सूत्र-४०,४१
पाँच प्रकार के महाव्रत का पालन करने में तत्पर, पाँच समिति के निर्वाह में अच्छी तरह से उपयोगशील ऐसे पुण्यवान साधुपुरुष संथारा को अपनाते हैं । .......... छ जीवनिकाय की हिंसा के पाप से विरत, सात भयस्थान रहित बुद्धिवाला, जिस तरह से संथारा पर आरूढ़ होता हैसूत्र - ४२
जिसने आठ मदस्थान का त्याग किया है ऐसा साधु पुरुष आठ तरह के कर्म को नष्ट करने के लिए जिस तरह से संथारा पर आरूढ़ होता हैसूत्र-४३
नौ तरह के ब्रह्मचर्य की गुप्ति का विधिवत् पालन करनेवाला और दशविध यतिधर्म का निर्वाह करने में कुशल ऐसा संथारे पर आरूढ़ होता है उन सर्व का संथारा सुविशुद्ध माना जाता है। सूत्र-४४
कषाय को जीतनेवाले और सर्व तरह के कषाय के विकार से रहित और फिर अन्तिमकालीन आराधना में उद्यत होने के कारण से संथारा पर आरूढ़ साधु को क्या लाभ मिलता है ? सूत्र -४५
और फिर कषाय को जीतनेवाला एवं सर्व तरह के विषयविकार से रहित और अन्तिमकालीन आराधना में उद्यत होने से संथारा पर विधि के अनुसार आरूढ़ होनेवाले साधु को कैसा सुख प्राप्त होता है ?
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(संस्तारक)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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