Book Title: Agam 26 Mahapratyakhyan Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 6
________________ आगम सूत्र २६, पयन्नासूत्र-३, 'महाप्रत्याख्यान' सूत्र - १२ मूलगुण और उत्तरगुण की मैंने प्रमाद से आराधन न कि हो तो उन सब अनाराधक भाव की अब मैं निन्दा करता हूँ और आगामी काल के लिए होनेवाले उन अनाराधन भाव से मैं वापस लौटता हूँ। सूत्र - १३ ___ मैं अकेला हूँ, मेरा कोई नहीं है, और मैं भी किसी का नहीं हूँ ऐसे अदीन चित्तवाला आत्मा को शिक्षीत करें सूत्र-१४ जीव अकेला उत्पन्न होता है और अकेला ही नष्ट होता है । अकेले को ही मृत्यु को प्राप्त करता है और अकेला ही जीव कर्मरज रहित होकर मोक्ष पाता है (मुक्त होता है ।) सूत्र-१५ अकेला ही कर्म करता है, उस के फल को भी अकेले ही भुगतान करता है, अकेला ही उत्पन्न होता है और अकेला ही मरता है और परलोक में उत्पन्न भी अकेला ही होता है। सूत्र-१६ ज्ञान, दर्शन, लक्षणवंत अकेला ही मेरा आत्मा शाश्वत है; बाकी के मेरे बाह्य भाव सर्व संयोगरूप हैं। सूत्र-१७ जिस की जड संयोग है ऐसे दुःख की परम्परा जीव पाता है उन के लिए सर्व संयोग सम्बन्ध को त्रिविधे वोसिराता (त्याग करता) हूँ। सूत्र - १८ असंयम, अज्ञान, मिथ्यात्व और जीव एवं अजीव के लिए जो ममत्व है उसकी मैं निन्दा करता हूँ और गुरु की साक्षी से गर्दा करता हूँ। सूत्र-१९ मिथ्यात्व को अच्छे तरीके से पहचानता हूँ। इसलिए सर्व असत्य वचन को और सर्वथा से ममता का मैं त्याग करता हूँ और सर्व को खमाता हूँ। सूत्र - २० जो-जो स्थान पर मेरे किए गए अपराध को जिनेश्वर भगवान जानते हैं, सभी तरह से उपस्थित हआ मैं उस अपराध की आलोचना करता हूँ। सूत्र - २१ उत्पन्न यानि वर्तमानकाल की, अनुत्पन्न यानि भावि की माया, दूसरी बार न करूँ, इस तरह से आलोचन, निंदन और गर्दा द्वारा उन का मैं त्याग करता हूँ। सूत्र - २२ जैसे बोलता हुआ बच्चा कार्य और अकार्य सबकुछ सरलता से कह दे वैसे माया और मद द्वारा रहित पुरुष सर्व पाप की आलोचना करता है। सूत्र - २३ जिस तरह घी द्वारा सिंचन किया गया अग्नि जलता है वैसे सरल होनेवाले मानव को आलोचना शुद्ध होती है और शुद्ध होनेवाले में धर्म स्थिर रहता है और फिर परम निर्वाण यानि मोक्ष पाता है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(महाप्रत्याख्यान)” आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 6Page Navigation
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