Book Title: Agam 26 Mahapratyakhyan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र २६, पयन्नासूत्र - ३, 'महाप्रत्याख्यान'
सूत्र - ९३
इन्द्रिय की सुखशाता में आकुल, विषम परीषह को सहने के लिए परवश हुआ हो और जिसने संयम का पालन नहीं किया ऐसा क्लिब (कायर) मानव आराधना के समय घबरा जाता है ।
सूत्र
सूत्र - ९४
लज्जा, गारव और बहुश्रुत के मद द्वारा जो लोग अपना पाप गुरु को नहीं कहते वो आराधक नहीं बनते। सूत्र - ९५
दुष्कर क्रिया करनेवाला हो, मार्ग को पहचाने, कीर्ति पाए और अपने पाप छिपाए बिना उस की निन्दा करे इस के लिए आराधना श्रेय-कल्याणकारक कही है ।
सूत्र ९६
तृण का संधारा या प्राशुक भूमि उस की (विशुद्धि की वजह नहीं है लेकिन जो मनुष्य की आत्मा विशुद्ध हो वही सच्चा संधारा कहा जाता है।
सूत्र ९७
जिनवचन का अनुसरण करनेवाली शुभध्यान और शुभयोग में लीन ऐसी मेरी मति हो; जैसे वह देश काल में पंड़ित हुई आत्मा देह त्याग करता है।
सूत्र ९८
जिनवर वचन से रहित और क्रिया के लिए आलसी कोइ मुनि जब प्रमादी बन जाए तब इन्द्रिय समान चोर (उस के) तप संयम को नष्ट करते हैं।
सूत्र ९९
जिन वचन का अनुसरण करनेवाली मतिवाला पुरुष जिस समय संवर में लीन हो कर उस समय बंटोल के सहित अग्नि के समान मूल और डाली सहित कर्म को जलाने में समर्थ होते हैं ।
सूत्र - १००
जैसे वायु सहित अग्नि हरे वनखंड के पेड़ को जला देती है, वैसे पुरुषाकार (उद्यम) सहित मानव ज्ञान द्वारा कर्म का क्षय करते हैं।
सूत्र २०१
अज्ञानी कईं करोड़ सालमें जो कर्मक्षय करते हैं वे कर्म को तीन गुप्तिमें गुप्त ज्ञानी पुरुष एक श्वासमें क्षय
कर देता है ।
सूत्र - १०२
वाकई में मरण नीकट आने के बावजूद बारह प्रकार का श्रुतस्कंध ( द्वादशांगी) सब तरह से दृढ एवं समर्थ ऐसे चित्तवाले मानव से भी चिन्तवन नहीं किया जा सकता है।
सूत्र - १०३-१०५
वीतरागशासनमें एक भी पद के लिए जो संवेग किया जाता है, वो उस का ज्ञान है, जिस से वैराग्य पा सकते हैं । ..... वीतराग के शासन में एक भी पद के लिए जो संवेग किया जाता है, उस से वह मानव मोहजाल का अध्यात्मयोग द्वारा छेदन करते हैं। ....... वीतराग के शासन में एक भी पद के लिए जो संवेग करता है, वह पुरुष हमेशा वैराग पाता है। इसलिए समाधि मरण से उसे मरना चाहिए।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(महाप्रत्याख्यान)” आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद”
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