Book Title: Agam 26 Mahapratyakhyan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र २६, पयन्नासूत्र - ३, 'महाप्रत्याख्यान'
सूत्र - ६५
किसी प्रार्थना मैंने राग-द्वेष को वश हो कर प्रतिबंध से कर के कई प्रकार से की हो उस की मैं निन्दा करता हूँ और गुरु की साक्षी में गर्हता हूँ ।
सूत्र - ६६
मोहजाल को तोडके, आठ कर्म की शृंखला को छेद कर और जन्म-मरण समान अरहट्ट को तोड के तूं संसार से मुक्त हो जाएगा।
सूत्र - ६७
पाँच महाव्रत को त्रिविधे त्रिविधे आरोप के मन, वचन और कायगुप्तिवाला सावध हो कर मरण को आदरे । सूत्र ६८-७०
क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रेम और द्वेष का त्याग करके अप्रमत्त ऐसा मैं एवं... कलह, अभ्याख्यान, चाडी और पर की निन्दा का त्याग करता हुआ और तीन गुप्तिवाला मैं एवं ;- पाँच इन्द्रिय को संवर कर और काम के पाँच (शब्द आदि) गुण को रूंधकर देव गुरु की अतिआशातना से डरनेवाला मैं महाव्रत की रक्षा करता हूँ । सूत्र ७१, ७२
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सूत्र
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कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या और आर्त्त रौद्र ध्यान को वर्जन करता हुआ गुप्तिवाला और उसके सहित- ... तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या एवं शुक्लध्यान को आदरते हुए और उसके सहित पंचमहाव्रत की रक्षा करता हूँ।
सूत्र - ७३
मन द्वारा, मन सत्यपन से, वचन सत्यपन से और कर्तव्य सत्यपन से उन तीनों प्रकार से सत्य रूप से प्रवर्तनेवाला और जाननेवाला मैं पंच महाव्रत की रक्षा करता हूँ ।
सूत्र ७४
सात भयरहित, चार कषाय रोककर, आठ मद स्थानक रहित होनेवाला मैं पंचमहाव्रत की रक्षा करता हूँ । सूत्र - ७५
तीन गुप्ति, पाँच समिति, पच्चीस भावनाएं, ज्ञान और दर्शन को आदरता हुआ और उन के सहित मैं पंचमहाव्रत की रक्षा करता हूँ।
सूत्र ७६
इसी प्रकार से तीन दंड़ से विरक्त, त्रिकरण शुद्ध, तीन शल्य से रहित और त्रिविधे अप्रमत्त ऐसा मैं पंचमहाव्रत की रक्षा करता हूँ ।
सूत्र - ७७
सर्व संग को सम्यक् तरीके से जानता हूँ । माया शल्य, नियाण शल्य और मिथ्यात्व शल्य रूप तीन शल्य को त्रिविधे त्याग कर के, तीन गुप्तियाँ और पाँच समिति मुझे रक्षण और शरण रूप हो ।
सूत्र- ७८, ७९
जिस तरह समुद्र का चक्रवाल क्षोभ होता है तब सागर के लिए रत्न से भरे जहाज को कृत करण और बुद्धिमान जहाज चालक रक्षा करते हैं
वैसे गुण समान रत्न द्वारा भरा, परिषह समान कल्लोल द्वारा क्षोभायमान होने को शुरु हुआ तप समान जहाज को उपदेश समान आलम्बनवाला धीर पुरुष आराधन करते हैं (पार पहुँचाता है) ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (महाप्रत्याख्यान)" आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद"
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