Book Title: Agam 26 Mahapratyakhyan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 9
________________ आगम सूत्र २६, पयन्नासूत्र-३, 'महाप्रत्याख्यान' सूत्र -५२ संसारचक्र के लिए उन सर्व पुद्गल मैंने कईं बार आहाररूप में लेकर परीणमाए तो भी तृप्त न हुआ । सूत्र-५३ आहार के निमित्त मैं सर्व नरकलोक के लिए कई बार उत्पन्न हुआ और सर्व म्लेच्छ जाति में उत्पन्न हुआ हूँ सूत्र-५४ आहार के निमित्त से मत्स्य भयानक नरक में जाते हैं। इसलिए सचित्त आहार मन द्वारा भी प्रार्थे सूत्र- ५५ तृण और काष्ठ द्वारा जैसे अग्नि या हजारों नदियाँ द्वारा जैसे लवणसमुद्र तृप्त नहीं होता वैसे यह जीव कामभोग द्वारा तृप्त नहीं होता। सूत्र - ५६ तृण और काष्ठ द्वारा जैसे अग्नि या हजारों नदियों द्वारा जैसे लवणसमुद्र तृप्त नहीं होता वैसे यह जीव द्रव्य द्वारा तृप्त नहीं होता। सूत्र-५७ तृण और काष्ठ द्वारा जैसे अग्नि या हजारों नदियों द्वारा जैसे लवणसमुद्र तृप्त नहीं होता वैसे जीव भोजन विधि द्वारा तृप्त नहीं होता। सूत्र -५८ वड़वानल जैसे और दुःख से पार पाए ऐसे अपरिमित गंध माल्य से यह जीव तृप्त नहीं हो सकता। सूत्र-५९ अविदग्ध (मूरख) ऐसा यह जीव अतीत काल के लिए और अनागत काल के लिए शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श कर के तृप्त नहीं हुआ और होगा भी नहीं। सूत्र - ६० देवकुरु, उत्तरकुरु में उत्पन्न होनेवाले कल्पवृक्ष से मिले सुख से और मानव, विद्याधर और देव के लिए उत्पन्न हुए सुख द्वारा यह जीव तृप्त न हो सका। सूत्र-६१ खाने या पीने के द्वारा यह आत्मा बचाया नहीं जा सकता; यदि दुर्गति में न जाए तो निश्चय से बचाया हुआ कहा जाता है। सूत्र-६२ देवेन्द्र और चक्रवर्तीपन के राज्य एवम् उत्तम भोग अनन्तीबार पाए लेकिन उनके द्वारा मैं तृप्त न हो सका। सूत्र-६३ दूध, दहीं और ईक्षु के रस समान स्वादिष्ट बड़े समुद्र में भी कईं बार मैं उत्पन्न हुआ तो भी शीतल जल द्वारा मेरी तृष्णा न छीप सकी। सूत्र - ६४ मन, वचन और काया इन तीनों प्रकार से कामभोग के विषय सुख के अतुल सुख को मैंने कईं बार अनुभव किया तो भी सुख की तष्णा का शमन नहीं हआ। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(महाप्रत्याख्यान)” आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 9

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