Book Title: Agam 26 Mahapratyakhyan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ आगम सूत्र २६, पयन्नासूत्र-३, 'महाप्रत्याख्यान' सूत्र २६ महाप्रत्याख्यान पयन्नासूत्र-३- हिन्दी अनुवाद सूत्र-१ अब मैं उत्कृष्ट गतिवाले तीर्थंकर को, सर्व जिन को, सिद्ध को और संयत (साधु) को नमस्कार करता हूँ। सूत्र -२ सर्व दुःख रहित ऐसे सिद्ध को और अरिहंत को नमस्कार हो, जिनेश्वर भगवान ने प्ररूपित किए हुए तत्त्वों, सभी की मैं श्रद्धा करता हूँ और पाप के योग का पच्चक्खाण करता हूँ। सूत्र-३ जो कुछ भी बूरा आचरण मुझ से हुआ हो उन सब की मैं सच्चे भाव से निन्दा करता हूँ, और मन, वचन, काया इन तीन प्रकार से सर्व आगार रहित सामायिक अब मैं करता हूँ। सूत्र-४ बाह्य उपधि (वस्त्रादिक), अभ्यंतर उपधि (क्रोधादिक), शरीर आदि, भोजन सहित सभी को मन, वचन, काया से त्याग करता हूँ। सूत्र-५ राग का बंध, द्वेष, हर्ष, दीनता, आकुलपन, भय, शोक, रति और मद को मैं वोसिराता हूँ। सूत्र-६ रोष द्वारा, कदाग्रह द्वारा, अकृतघ्नता द्वारा और असत् ध्यान द्वारा जो कुछ भी मैं अविनयपन से बोला हूँ तो त्रिविधे त्रिविधे मैं उसको खमाता हूँ। सूत्र -७ सर्व जीव को खमाता हूँ । सर्व जीव मुझे क्षमा करो, आश्रव को वोसिराते हुए मैं समाधि (शुभ) ध्यान को मैं आरंभ करता हूँ। सूत्र-८ जो निन्दने योग्य हो उसे मैं निन्दता हूँ, जो गुरु की साक्षी से निन्दने को योग्य हो उसकी मैं गर्दा करता हूँ और जिनेश्वरने जो निषेध किया है उस सर्व की मैं आलोचना कर सूत्र-९ उपधी, शरीर, चतुर्विध आहार और सर्व द्रव्य के बारेमें ममता इन सभी को जान कर मैं त्याग करता हूँ। सूत्र-१० निर्ममत्व के लिए उद्यमवंत हुआ मैं ममता का समस्त तरह से त्याग करता हूँ । एक मुझे आत्मा का ही आलम्बन है; शेष सभी को मैं वोसिराता (त्याग करता) हूँ। सूत्र-११ मेरा जो ज्ञान है वो मेरा आत्मा है, आत्मा ही मेरा दर्शन और चारित्र है, आत्मा ही पच्चक्खाण है । आत्मा ही मेरा संयम और आत्मा ही मेरा योग है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(महाप्रत्याख्यान)” आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 5

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16