Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Jambuddivpannatti Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text ________________
१०४४
विनारि-विज्जुष्पभह
विचारि (विवारिन) म १६१ विचित्त (विचित्र) ५२।३०,३१,४१,४६ ज २०१२;
३।६१०६,२२२,७१७८ ३ २०१७ उ २११० ३.१४,८३,१०२,१३५,१४२,४१२४,५।२८,
विचित्तकूड (विचित्रकूट) उ ६।१० विचित्तपक्ख (विचित्रपक्ष) प ११५१ विचित्ता (विचित्रा) ज ५११ विच्छड्डयित्ता (विच्छद्य) ज २१६४ विच्छड्डिय (विदित) ज ३११०३ विच्छिण्ण (विस्तीर्ण) : २१५१,५२,५४,५६,६०
ज ११८.१८,२०,२३,२५,३२,३५,४८,५१, २११५,३११,१८,३१,३५,५२,६१,६६,१०३, १०६,१३१,१३७,१३८।१,१४१ १६४,१८०; ४।१,३,४५,५५,६२,८६,८८,६८,१०३.१०८, ११०,११४,१४१,१५६.१६२.१६७.१६६, १७२,१७८,१८५,१८७,१६१.२००,२०३, २०५,२१३,२१५,२४२,२४५,२४६,२५१, २५२,२६२,२६८,२३,२८,४६;७.१७७।१,२
उ ३१३७ विच्छिण्णतर (विस्तीर्णतर) ज ४११०२ विच्छिप्पमाण (विस्पृश्यमान') २१६५;
३।१८६,२०४ विच्छुत (वृश्चिक) प १३५१ विच्छुयअल (वृश्चिक ल) ज ७१३३।३ विच्छ्यनंगोलसंठिय (वृश्चिक लांगूलनास्थित)
सू १०१५२ विडि (द्विजटिन्) सू२०१८,२०१८) विजय (विजय) प १११३८,२११,४८.६३ ;
४१२६४ से २६६,६१४२,५६७२६ १५१५५१२,१५८६,६२,१००,१०५,१०८, १०६,११३,११४,११६,१२०,१२१,१२३, १२५,१२६,१३१,१३६; २८९६ ज १११५, १६,४६,५१,११७:३३५,१८,२४१४,२६,
३१,३५,३७१२,३६,४५१२.४७.५२,५६.६१, ६४,६६,७२,८१,९०,११४ से ११६,१२२, १२४,१२६,१३११४,१३३.१३५,१३७,१३८ १४१,१४५,१५१,१५७,१६४,१३२,१७८, १८०,२०५,२०६,२०८,२०६; १४६५२, १०३,१६२,१६७ से १७,१८१ मे १८४, १८७ से १९१,१६३,१९६.१६७,१६६ २०३,२०६,२१२,२६२।४३,५५,५३,५८ ६.६.
१ १:४,१२२१२ च ५१४११०१८४ २,१२४११ उ ११०७.११०,११६,११८,
१२२,१३०,५१७ विजय (दिचय) १९ विजयखंधावार स्वा३।१७२ विजयडूस (
४८५ विजयपुरा ( 1) १२ विजयवेजइया (विजयी ) १२,२८,
४१,४६,५५.६६,७८,४७,१६८ विजया (विजया) ४२१८,२१२१४५१८।१;
७१२०१२,१२६ विजह (वि : हा) विहति सू १५३८
विज्ज (विद्) विज ३११२१११ विज्जल (दे०, वि ): ३८ विज्जा (विद्या) ३१६०१ विज्जाहर (विद्याधर) १६१.२११६३ ज ३.१३७
रो १३६,२०:४/७ २ ।२८ ३ ५१५ ज्जिाहरसेढी विद्या मोज ११२५ से २८%
४११७२:६।१५ विज्जु (विधु) १९६६१,२१४०।६,११ ____ ज ४।२१०१? सू०१ विज्जुकुमार (विध कु. :) ११३१; १३;
६.१८ विज्नुकुमारिका ) विन्दुः (न्यूयत) विज्छप्पन (६.बुर
से २१० विजुप्पम शुभ १२१० विजुप्पभदह (विद्युमन ल ४६६४
१. हे०४।२५.७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617