Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Jambuddivpannatti Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 582
________________ समय-समासतो ११०,११३,११४,११६,११६,१२०,१२२, १२३,२१६४।५।६।११,६५१ से १८,२० से ४५,६० से ६४,६७,६८,१०।३०११,२, १०७०,७१,१२२४,३३,१५१५८११,१६।३४, ३७,१८१५६,६०,६२,६३,६७,८०,८१,८४, ८७,८६,६५,६८,१०२.१०४, २०।१।१,२०१६ से १३; २२१५४,५६.५८,५६,७६:२३।६३, १६३,३०।२५,२६,३६.८५,८७,६२ ज ११२, ४,५,१४,१४,७१,८८,८६६१,१३१,१३४, १३८,१४१,३११०३,५१,६,८,९ से १३,१८, ४८,५० से ५२७।५७,६०,११२।१ च ६१६, १०१।१,४,५,६११:८1१६१२,१०११५२ से १६११११२ से ६,१६ से २८,३०; १३.१,२७१७११,१६।२५, २०१३,५,७ उ ११ से ३,६,१६,२८,५१,६५,७६,१४४; २१४,१७,३१४ से ६,६,१२,२१,२४,२५,२७, ४८,५०,५५ से ५७,६४,६८,७१,७४,७६,८६, ६०,६५,६८,६६,१०६,१३१,१३२,१५५ से १५७.१५६,१६८,१६६४१४ से ६,१०,५१४, १४,२१,२४,२६,३६,४०,४१ समय (समक) ज १।१४ । समयक्खेत्त (समयक्षेत्र) सू १६२०,२१ समयखेत (समयक्षेत्र) प २११८६ समर (समर) ज ३।३,३५.१०३ समवण्ण (समवर्ण) प १७४५,६,१७ समवेदण (समवेदन) १७११११,१७१८,६,१६,२० समसरीर (समशीर) प १७:१,२,२८,२६ समसोक्ख (समसौख्य) १६०,६३ समा (समा) जरा७ से १५,२१ से ४५,५० से ५६,८८,१२१ से १३३,१३८ से १४०,१४७ से १५०,१५२ से १६४,३११३५६१,४।१८०, १८३,७३७ सू ६।४।१८।२,३ समाउय (सम्मानुष्य) प १७११११,१७।१२,१३ समागम (सागः:) ज २४, समाण (सत् ) प १५१५१,५२,१७।११६ 2. २८.१०५,३४११६,२१ से २४,३६१६२,७७ ज २०६० से ६२,७१,१४२ से १४५,३३,., १३,१४,१६,२२,२५,२६,३०,३६,३८,४२, ४३,४६,५०,५१,५३,५९,६०,६२,६७,६८, ७०,७५,७७,८०,८२,८४,८६,६७,१००, १११,११८,१२५,१२६,१३२.१३६,१४२, १४८,१४६,१५६,१६१,१६५,१६६,१७८, १५१,१८६,१९२,२०२,२०८,२१२ से २१४, २१७,२१६,४।२३,२५,३५,३७,३८,४२,६५, ७१,७३,७७,६०,६१,६४,१७४,१८३,१८६, १६५,२६२:५११५,२२,२४,२६,२६,४३.७० सू ६।१ उ १११७,२३ से २६,३७,४०,४५, ५२,५५ से ५८,६०,६२,७४,७७,८० से ५३, ८५,६० से १३,६६,१०७.१०८,११०,११८, १२७, ३.१३,१५,२६,५०,५५,७८,८२,८४, १०६,१०८,११२,१२१,१४७,१६०,१६२; ४|११,२०,५।१५,१७,३८ समाण (समान) ज ३।११७ सू २०१७ उ ३।१२८ सिमाण (सं--आप्) समाणे इ ज ७१०४ सू १०।१३० समातिम् १०११२६ समाणीत (समानीत) उ ३१४८,५० समाणु भाव (समानुभाव) २१६०,६३ ज २११३१; ४१५६ सिमादह (मं+आ-!-धा) समादहे उ ३१५१ समादीय (समादिक) सू १२।१० से १२ समायरित्तए (समाचरितुम् ) उ ३।१०२ समारंभ (समारम्भ) उ १।२७,१४० समारूढ (समारूढ) ज ३११२१ समालभ (सं+आ--लम्) समालभइ उ३।११४ समावण्णग (समापन्नक) ज ७१५५,५८ समास (समास) प ३३८,३६ ज ७.१०१,१०२ सू १६।२।१ समासओ (समासतस्) प ११४८१५४:११४८ ... ज २१६६ समासतो (समासतस्) प ११४,२०,२३,२६,२६, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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