Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Chandapannatti Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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जंबुद्दीपण्णत्ती प्रति- परिचय
(अ) जंबुद्दीवपण्णत्ती मूलपाठ (हस्तलिखित)
यह प्रति जेसलमेर मंडार की ताडपत्रीय ( फोटोप्रिंट) मदनचन्द जी गोठी सरदारशहर द्वारा प्राप्त है । इसके पत्र १६४ और पृष्ठ ३२८ हैं । प्रत्येक पत्र में २ से ६ तक पंक्तियां हैं। कहीं-कहीं पंक्तियां अधूरी लिखी हुई हैं। प्रत्येक पंक्ति में अक्षर ३० से ३५ तक हैं । अन्त में ग्रंथास ४१४६ इतना ही लिखा हुआ है। इसके साथवाली प्रति के आधार पर यह प्रति १४ वीं शती की होनी चाहिए । (ब) जंबुद्दीवपण्णत्ती मूलपाठ (हस्तलिखित )
यह प्रति जेसलमेर भंडार ताडपत्रीय ( फोटोप्रिन्ट) मदनचन्दजी गोठी 'सरदारशहर' द्वारा प्राप्त है । इसके पत्र ६७ व पृष्ठ १६४ हैं । प्रत्येक पत्र में २ से ६ तक पंक्तियां हैं । प्रत्येक पंक्ति में ४७ से ५० तक अक्षर हैं। लिपि सं० १३७८ लिखा हुआ है ।
( स ) जंबुद्दीवपण्णत्ती मूलपाठ (हस्तलिखित)
यह प्रति जैसलमेर मंडार पत्राकार ( फोटोप्रिन्ट) मदनचन्दजी गोठी 'सरदारशहर' द्वारा प्राप्त है । इसके पत्र ४६ व पृ. ९२ हैं । प्रत्येक पत्र में २० पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ७० से ७४ तक अक्षर हैं । लिपि सं. १६४६ लिखा हुआ है। प्रति बहुत महीन लिखी हुई है।
(क) जंबुद्दीवपण्णत्तो मूलपाठ (हस्तलिखित)
पत्र संख्या ७३ श्रीचंद गणेशदास गर्धया संग्रहालय ( सरदारशहर )
(ख) जंबुद्दीवपण्णत्तो मूलपाठ (हस्तलिखित )
यह प्रति जैन विश्व भारती हस्तलिखित ग्रंथालय 'लाडनूं' की है। इसके पत्र १०१ व पृष्ठ २०२ हैं ! प्रत्येक पत्र में १३ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ५० से ५५ तक अक्षर हैं। प्रति प्राचीन व सुंदर लिखी हुई है । लिपि संवत् नहीं है ।
(ग) जंबुद्दोवपण्णत्ती त्रिपाठी, मूलपाठ व वृत्ति (हस्तलिखित )
यह प्रति जैन विश्व भारती हस्तलिखित ग्रन्थालय 'लाडनूं' की है। इसके पत्र ३५८ व पृष्ठ ७१६ है । प्रति के मध्य में मूलपाठ व ऊपर नीचे टीका लिखी हुई है । लिपि संवत् १९१३ अंकित है । प्रति सुंदर लिखी हुई है । इसके ६६-७० दो पत्र प्राप्त नहीं हैं ।
(होवृ ) हीरविजयसूरि विरचित वृत्ति त्रिपाठी (हस्तलिखित)
( होवृपा ) हीरविजय सूरि द्वारा गृहीत पाठान्तर
यह प्रति शासन ग्रंथ भंडार 'लाडनूं' की है। इसकी पत्र संख्या ५८२ है । बीच में मूलपाठ व ऊपर नीचे वृत्ति लिखी हुई है । लिपि संवत् १६१६
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(ga) खरतरगच्छीय जिनहंसगणि शिष्य महोपाध्याय पुण्यसागर विरचित वृत्ति
(हस्तलिखित)
(पुवृषा) पुण्यसागर द्वारा गृहीत पाठान्तर
यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधेया संग्रहालय 'सरदारशहर' की है। इसके पत्र २४३ व पृष्ठ
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