________________ अभिमत श्रीसुव्रतमुनि 'सत्यार्थी शास्त्री एम.ए. (हिन्दी-संस्कृत) परमपूज्य, विद्वद्वरेण्य, तत्त्ववेत्ता, प्रबुद्ध मनीषी, आगमबोधनिधि, श्रमणश्रेष्ठ, स्व. युवाचार्य श्री मिश्रीमलजी म. 'मधुकर' जी प्राचीन विद्या के सर्वतन्त्रस्वतन्त्र प्रवक्ता थे। आपके मार्गदर्शन एवं प्रधान सम्पादकत्व में जैन आगम प्रकाशन का जो महान् श्रुत-यज्ञ प्रारम्भ हुआ, उसमें प्रकाशित श्री प्राचारांग, उत्तराध्ययन, व्याख्याप्रज्ञप्ति और उपासकदशांग आदि सूत्र गुरुकृपा से देखने को मिले। नागमों की सामयिक भाषा-शैली, और तुलनात्मक विवेचन एवं विश्लेषण अतीव श्रमसाध्य है। शोधपूर्ण प्रस्तावना, अनिवार्य पादटिप्पण एवं परिशिष्टों से आगमों की उपयोगिता सामान्य और विशेष दोनों ही प्रकार के पाठकों के लिए सुगम हो गई है तथा आधुनिक शोध-विधा के लिए अत्यन्त उपयोगी है। सभी सूत्रों की सुन्दर शुद्ध छपाई, उत्तम कागज और कवरिंग बहुत ही आकर्षक है / अतीव अल्प समय में विशालकाय 30 आगमों का प्रकाशन महत्त्वपूर्ण अवदान है। इसका श्रेय श्रुत-यज्ञ के प्रणेता आगममर्मज्ञ, पूज्यप्रवर युवाचार्य श्री जी म. को है तथापि इस महनीय श्रुत-यज्ञ में जिन पूज्य गुरुजनों, साध्वीवृन्द एवं सद्गृहस्थों ने सहयोग दिया है वे सभी अभिनन्दनीय एवं प्रशंसनीय हैं। आगम प्रकाशन समिति विशेष साधुवाद की पात्र है। For Private & Personal use only www.jainelibrary.org