Book Title: Agam 12 Aupapatik Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar View full book textPage 5
________________ आगम सूत्र १२, उपांगसूत्र-१, 'औपपातिक' [१२] औपपातिक उपांगसूत्र-१- हिन्दी अनुवाद सूत्र-१ उस काल, उस समय, चम्पा नामक नगरी थी । वह वैभवशाली, सुरक्षित एवं समृद्ध थी । वहाँ के नागरिक और जनपद के अन्य व्यक्ति वहाँ प्रमुदित रहते थे । लोगों की वहाँ घनी आबादी थी । सैकड़ों, हजारों हलों से जुती उसकी समीपवर्ती भूमि सुन्दर मार्ग-सीमा सी लगती थी । वहाँ मुर्गों और युवा सांढों के बहुत से समूह थे । उसके आसपास की भूमि ईख, जौ और धान के पौधों से लहलहाती थी । गायों, भैसों, भेड़ों की प्रचुरता थी । सुन्दर शिल्पकलायुक्त चैत्य और युवतियों के विविध सन्निवेशों-का बाहुल्य था । वह रिश्वतखोरों, गिरहकटों, बटमारों, चोरों, खण्डरक्षकों से रहित, सुख-शान्तिमय एवं उपद्रवशून्य थी । भिक्षा सुखपूर्वक प्राप्त होती थी, वहाँ निवास करने में सब सुख मानते थे, अनेक श्रेणी के कौटुम्बिक की घनी बस्ती होते हुए भी वह शान्तिमय थी । नट, नर्तक, जल्ल, मल्ल, मौष्टिक, विदूषक, कथक, प्लवक, लासक, आख्यायक, लंख, मंख, तूणइल्ल, तुंबवीणिक, तालाचर आदि अनेक जनों से वह सेवित थी। आराम, उद्यान, कूएं, तालाब, बावड़ी, जल के बाँध-इनसे युक्त थी, नंदनवनसी लगती थी । वह ऊंची, विस्तीर्ण और गहरी खाई से युक्त थी, चक्र, गदा, भुसुंडि, गोफिया, अवरोध-प्राकार, महाशिला, जिसके गिराये जाने पर सैकड़ों व्यक्ति दब-कुचल कर मर जाएं और द्वार के छिद्र रहित कपाटयुगल के कारण जहाँ प्रवेश कर पाना दुष्कर था। धनुष जैसे टेढ़े परकोटे से वह घिरी हुई थी । उस परकोटे पर गोल आकार के बने हुए कपिशीर्षकों-से वह सुशोभित थी । उसके राजमार्ग, अट्टालक, गुमटियों, चरिका, वारियों, गोपुरों, तोरणों से सुशोभित और सुविभक्त थे। उसकी अर्गला और इन्द्रकील-निपुण शिल्पियों द्वारा निर्मित थीं। हाट-मार्ग, व्यापार-क्षेत्र, बाजार आदि के कारण तथा बहुत से शिल्पियों, कारीगरों के आवासित होने के कारण वह सुख-सुविधा पूर्ण थी । तिकोने स्थानों, तिराहों, चौराहों, चत्वरों, ऐसे स्थानों, बर्तन आदि की दुकानों तथा अनेक प्रकार की वस्तुओं से परिमंडित और रमणीय थी । राजा की सवारी नीकलते रहने के कारण उसके राजमार्गों पर भीड़ लगी रहती थी । वहाँ अनेक मदोन्मत्त हाथी, रथसमूह, शिबिका, स्यन्दमानिका, यान, तथा युग्य-इनका जमघट लगा रहता था । वहाँ खिले हुए कमलों से शोभित जलाशय थे । सफेदी किए हुए उत्तम भवनों से वह सुशोभित, अत्यधिक सुन्दरता के कारण निर्निमेष नेत्रों से प्रेक्षणीय, चित्त को प्रसन्न करने वाली, दर्शनीय, अभिरूप तथा प्रतिरूप थी। सूत्र -२ उस चम्पा नगरी के बाहर ईशान कोण में पूर्णभद्र नामक चैत्य था । वह चिरकाल से चला आ रहा था। पूर्व पुरुष उसकी प्राचीनता की चर्चा करते रहते थे । वह सुप्रसिद्ध था । वह चढ़ावा, भेंट आदि के रूप में प्राप्त सम्पत्ति से युक्त था । वह कीर्तित था, न्यायशील था । वह छत्र, ध्वजा, घण्टा तथा पताका युक्त था । छोटी और बड़ी झण्डियों से सजा था । सफाई के लिए वहाँ रोममय पिच्छियाँ रखी थीं। वेदिकाएं बनी हुई थीं। वहाँ के भूमि गोबर आदि से लिपी थी । उसकी दीवारें खड़िया, कलई आदि से पुती थीं । उसकी दीवारों पर गोरोचन तथा आर्द्र लाल चन्दन के, पाँचों अंगुलियों और हथेली सहित, हाथ की छापें लगीं थीं । वहाँ चन्दन-कलश रखे थे । उसका प्रत्येक द्वार-भाग चन्दन-कलशों और तोरणों से सजा था । जमीन से ऊपर तक के भाग को छूती हुई बड़ी-बड़ी, गोल तथा लम्बी अनेक पुष्पमालाएं लटकती थीं । पाँचों रंगों के फूलों के ढेर के ढेर वहाँ चढ़ाये हुए थे, जिनसे वह तीत होता था । काले अगर, उत्तम कुन्दरुक, लोबान तथा धूप की गमगमाती महक से वहाँ का वातावरण बड़ा मनोज्ञ था, उत्कृष्ट सौरभमय था । सुगन्धित धूएं की प्रचुरता से वहाँ गोल-गोल धूममय छल्ले से बन रहे थे। वह चैत्य नट, नर्तक, जल्ल, मल्ल, मौष्टिक, विदूषक, प्लवक, कथक, लासक, लंख, मंख, तूणइल्ल, मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (औपपातिक)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 5Page Navigation
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