Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Mool Sthanakvasi Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman Publisher: Global Jain Agam Mission View full book textPage 9
________________ १० ११ गहाय आयाए एगंतं अवक्कमइ, एस मे णित्थारिए समाणे पच्छा पुरा हियाए सुहाए खमाए णिस्सेसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ । एवामेव मम वि एगे आया भंडे इट्ठे कंते पिए मणुणे मणामे, एस मे णित्थारिए समाणे संसारवोच्छेयकरे भविस्सइ । तं इच्छामि णं देवाणुप्पियाहिं सयमेव पव्वावियं, सयमेव मुंडावियं, सेहावियं, सिक्खावियं, सयमेव आयार - गोयर - विणयवेणइय चरण- करण-जाया- मायावत्तियं धम्ममाइक्खियं । तए णं समणे भगवं अरिट्ठणेमी सयमेव पव्वावेइ जाव धम्ममाइक्खड़ एवं देवाणुप्पिया! गंतव्वं चिट्ठियव्वं णिसीयव्वं तुयट्टियव्वं भुंजियव्वं भासियव्वं, एवं उट्ठाए उट्ठाय पाणेहिं भूएहिं जीवेहिं सत्तेहिं संजमेणं संजमियव्वं, अस्सिं च णं अट्ठे णो पमाएयव्वं । तणं से गोयमेकुमारे समणस्स भगवओ अरिट्ठणेमिस्स अंतिए इमं एयारूवं धम्मियं उवएसं सोच्चा णिसम्म सम्मं पडिवज्जइ । तमाणाए तह गच्छइ, तह चिट्ठइ, तह णिसीयइ, तह तुयट्टइ, तह भुंजइ, तह भासइ, तह उट्ठाए उट्ठाय पाणेहिं भूएहिं जीवेहिं सत्तेहिं संजमइ तए णं से गोयमे अणगारे जाए- इरियासमिए जाव इणमेव णिग्गंथं पावयणं पुरओ काउं विहरइ । तणं से गोयमे अण्णया कयाइं अरहओ अरिट्ठणेमिस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाइ अहिज्जइ अहिज्जित्ता बहूहिं चउत्थ छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं विविहेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । तए णं अरहा अरिट्ठणेमी अण्णा कयाई बारवईओ णयरीओ णंदणवणाओ पडिणिक्खमइ, बहिया जणवयविहारं विहरइ I तए णं से गोयमे अणगारे अण्णया कयाइ जेणेव अरहा अरिट्ठणेमी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिट्ठणेमिं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे मासियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । एवं जहा खंदओ तहा बारस भिक्खुपडिमाओ फासेइ । गुणरयणं पि तवोकम्मं तहेव फासेइ णिरवसेसं । जहा खंदओ तहा चिंतेइ, तहा आपुच्छइ, तहा थेरेहिं सद्धिं सेत्तुंजं दुरूहइ, बारस वरिसाइं परियाए मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसेइ, झोसित्ता सट्ठि भत्ताई अणसणाए छेदेइ, छेदित्ता जस्सट्ठाए कीरइ णग्गभावे मुंडभावे, केसलोए, बंभचेरवासे, अण्हाणगं, अदंतवणयं अच्छत्तयं, अणुवाहणयं, भूमिसेज्जाओ, फलगसेज्जाओ, कट्ठ सेज्जाओ परघरप्पवेसे, लद्धावलद्धाइं माणावमाणाइं, परेसिं हीलणाओ, निंदणाओ, खिसणाओ, तालणाओ, गरहणाओ, उच्चावया विरूवरूवा गामकंटगा बावीसं परीसहोवसग्गा अहियासिज्जंति, तमट्ठे आराहेइ, चरिमेहिं उस्सास णिस्सासेहिं सिद्धे बुद्धे मुत्ते परिणिव्वडे सव्वदुक्खपहीणे । एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते । ॥ पढमं अज्झयणं समत्तं ॥Page Navigation
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