Book Title: Agam 05 Bhagavai Panchamam Angsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 15
________________ सतं-१, वग्गो- ,सतंसतं- , उद्देसो-३ उदीरेइ अणुदिण्णं अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ उदयाणंतरपच्छाकडं कम्मं उदीरेइ ? गोयमा! नो उदीण्णं उदीरेइ, नो अणुदिण्णं उदीरेइ, अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्म उंदीरेइ, णो उदयाणंतरपच्छाकडं कम्म उदीरेइ। जं तं भंते! अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ तं किं उट्ठाणेणं कम्मेणं बलेणं वीरिएणं पुरिसक्कारपरक्कमेणं अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ? उदाह तं अणुट्ठाणेणं अकम्मेणं अबलेणं अवीरिएणं अपुरिसक्कारपरक्कमेणं अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ? गोयमा! तं उट्ठाणेणं वि कम्मेण वि बलेण वि वीरिएण वि पुरिसक्कारपरक्कमेण वि अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्म उदीरेइ, णो तं अणुट्ठाणेणं अकम्मेणं अकम्मेणं अबलेणं अवीरएणं अपुरिसक्कारपरक्कमेणं अणुदिण्णं उदीरणाभवियं कम्मं उदीरेइ। एवं सति अत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कापरपरक्कमे इ वा। से नूणं भंते! अप्पणा चेव उवसामेइ, अप्पणा चेव गरहइ, अप्पणा चेव संवरेइ? हंता, गोयमा! एत्थ वि तं चेव भाणियव्वं, नवरं अणुदिण्णं उवसामेइ, सेसा पडिसेहेयव्वा तिण्णि। जं तं भंते! अणुदिण्णं उवसामेइ तं किं उट्ठाणेणं जाव परिसक्कारपरक्कमे इ वा। से नूणं भंते! अप्पणा चेव वेदेइ अप्पणा चेव गरहइ0? एत्थ वि स च्चेव परिवाडी। नवरं उदिण्णं वेएइ, नो अणुदिण्णं वेएइ। एवं जाव पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा। से नूणं भंते! अप्पणा चेव निज्जरेति अप्पणा चेव गरहइ? एत्थ वि स च्चेव परिवाडी। नवरं उदयाणंतरपच्छाकडं कम्मं निज्जरेइ, एवं जाव परक्कमेइ वा। [४४] नेरइया णं भंते! कंखामोहणिज्जं कम्मं वेएंति? जधा ओहिया जीवा तथा नेरइया जाव थणितकुमारा। पुढविक्काइया णं भंते! कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेति? हंता, वेदेति। कहं णं भंते! पुढविक्काइया कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेति? गोयमा! तेसि णं जीवाणं णो एवं तक्का इ वा सण्णा इ वा पण्णा इ वा मणे इ वा वई ति वा 'अम्हे णं कंखामोहणिज्जं कम्म वेदेमो' वेदेति पुण ते। से गुणं भंते! तमेव सच्चं नीसंकं जं जिणेहिं पवेदियं। सेसं तं व जाव पुरिसक्कारपरक्कमेणं ति वा। एवं जाव चरिंदिया। पंचिदियतिरिक्खजोणिया जाव वेमाणिया जधा ओहिया जीवा। [४५] अत्थि णं भंते! समणा वि निग्गंथा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेति? हंता, अत्थि। कहं णं भंते! समणा वि निग्गंथा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेति? गोयमा! तेहिं तेहिं नाणंतरेहिं दंसणंतरेहिं चरितंतरेहिं लिंगंतरेहिं पवयणंतरेहिं पावयणंतरेहिं कप्पंतरेहिं मग्गंतरेहिं मतंतरेहिं भंगंतरेहिं नयंतरेहिं नियमंतरेहिं पमाणंतररेहिं संकिया कंखिया वितिकिंछिता भेदसमावन्ना, कलुससामावन्ना, एवं खलु समणा निग्गंथा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेति। से नूणं भंते! तमेव सच्चं नीसंकं जं जिणेहिं पवेइयं? हंता, गोयमा! तमेव सच्चं नीसंकं जाव पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा। [दीपरत्नसागर संशोधितः] [14] [५-भगवई

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