Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 7
________________ संपादकीय निवेदन. जिनागमप्रकाशननी योजनामा भगवतीसूत्रना प्रथमना बे खंडो प्रकाशित थई गया छे, अने त्यार पठी लगभग चार वर्षे आ तृतीय खंड प्रकाशित थाय छे. प्रथमना वे खंडो मूळ अने टीकाना अनुवाद साथे पं० बेचरदास जीवराज दोशी पासे संशोधन करावी श्रीयुत पुंजाभाई हीराचंद द्वारा संस्थापित जिनागमप्रकाशक सभाना मानद कार्यवाहक महेता मनसुखलाल रवजीभाईए प्रकाशित कर्या हता, परन्तु त्यार पछी पंडित बेचरदास गूजरात पुरातत्त्वमंदिरमा नियोजित थवाथी अने महेता मनसुखलाल रवजीभाई सद्गत थवाथी आ कार्य बन्ध पड्युं. त्यार पछी केटला एक समय गया बाद श्रीयुत पुंजाभाई हीराचंदे गूजरात पुरातत्त्वमंदिरंना आचार्य श्रीजिनविज-यजी द्वारा आ काम मने सोंप्यु. उपरना बन्ने खंडोमां मूळ अने टीका अनुवाद सहित होवाथी अधिक विस्तार अने टाईपोनी विविधता होवाथी आगळ छपावानी मुश्केली हती, तेमज टीका अने टीकाना अनुवादनी पण बहु उपयोगिता जणाती नहोती, तेथी आ त्रीजा खंडमां मात्र मूळ अने तेनो अनुवाद सातमा शतकथी आरंमी पंदरमां शतक सुधी आपवामां आवेल छे. मूळ सूत्रमा ज्या ज्या बीजा सूत्रोना पाठोनी भलामण करेली छे त्यां ते ते स्थळे ते ते सूत्रोना स्थळोनी पाना-पंक्तीवार सूचना करवामां आवी छे. एक सविस्तर विषयानुक्रम आपवामां आव्यो छे, अने मूळना अनुवादने स्पष्ट करवा माटे स्थळे स्थळे टिप्पनो पण आपवामां आव्यां छे. आ ग्रन्थना संशोधनमा नीचेनी प्रतोनो उपयोग करवामां आव्यो छे. क. भगवतीसूत्र मूळ ( डहेलाना उपाश्रयनो भंडार) जुनी अने प्रायः शुद्ध. ख. भगवतीसूत्र सटीक (डहेलाना उपाश्रयनो भंडार) अशुद्ध. ग. भगवतीसूत्र सटीक (शांतिसागरनो उपाश्रय) नवी अने प्रायः शुद्ध. घ. भगवतीसूत्र सटीक (आगमोदयसमिति मुद्रित ). ङ. भगवतीसूत्र सटीक (बाबुधनपतसिंगजी प्रकाशित). ते सिवाय मुनिमहाराज श्रीहंसविजयजीना ज्ञानभंडारमाथी भगवती मूळनी ताडपत्रनी अपूर्ण प्रत शतक १३ थी मळी छे. उपरनी प्रतोने अनुसरीने दशमा शतक सुची आवश्यक पाठान्तरो लेवामां आव्या छे, पण पाछळयी आचार्य श्रीजिनविजयजीनी सूचना प्रमाणे पाठान्तर न लेता मूळ पाठने संशोधित करवामां ते प्रतिओनो उपयोग करेलो छे.. अनुवाद मूळ पाठने अनुसरीनेज करवामां आव्यो छे, अने तेने स्पष्ट करवा माटे वधाराना शब्दो [ ] कोष्ठकमा आपेला छे. मूळ पाठमां सूत्रनो विभाग नथी, पण अहिं प्रश्न अने उत्तरनी एक सूत्रमा गणना करी सूत्र विभाग करवामां आव्यो छे. अवान्तर प्रश्नने जूदा सूत्र तरीके न गणतां तेज सूत्रमा तेनी गणना करी लीधी छे. ते सिवाय ज्या प्रश्न नथी, परन्तु चरित्र के वर्णनात्मक भाग छे त्यां पण सरलताथी समजवा खातर सूत्रनो विभाग कर्यो छे. प्रत्येक उद्देशकमा सूचना अंको तेने प्रारंभे मूकवामां आव्या छे अने तेनो अनुवाद पण तेनी नीचे ते सूत्रनो अंक मूकी आपवामां आवेल छे.. विषयविभागनी स्पष्टता खातर दरेक पानानी पाळ उपर (मार्जिनमां) विषय अथवा प्रश्न सूचित करेल छे. आ पुस्तक पूर्ण थया पछी छेवटे तेनी प्रस्तावना तथा शब्दकोश आपवा धारणा छे. चोथा खंडमां आ प्रन्थ समाप्त थशे. आ पुस्तकना संशोधनमा जे जे महाशयोए हस्तलिखित प्रतो आपी सक्रिय सहाय करी छे ते माटे तेओनो कृतज्ञतापूर्वक आभार मार्नु छु. . छेवटे आ ग्रन्थना संशोधनमा के तेना अनुवादमा अज्ञान अने प्रमादयी अशुद्धि के दोषो रह्या होय ते माटे क्षमा यांची सुद्ध वाचकने सूचित करवा प्रार्थना करी विरमुं छं. श्रीजनविद्यार्थिमंदिर कोचरबरोड-अमदावाद मागशर सुदि पूर्णिमा. भगवानदास दोशी. Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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