Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Motichand Maganchand Choksi

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Page 5
________________ I बन्धनों का मूलभूत कारण समज के विशिष्ट संयम अनुष्ठान द्वारा किया करके आत्मा को-कर्मों के बन्धन से मुक्त करो। यहां पर अन्य दर्शन वाले कोइ एक केवल ज्ञान से मोश्च मानते है । और दुसरे दर्शनावलम्बी केवळ क्रियासे हि मोक्ष मानते हैं। परंतु जैनदर्शन में तो " उमाम्यां बानकियाम्यामेव मुक्तिः" ज्ञान और क्रिया दोनो मिलने पर ही मोक्ष है, ऐसा झानपूर्वक क्रिया द्वारा प्रत्यक्ष सिद्ध करते है। अतः प्रस्तुत मृत्र-कताब में व्यानयोग प्रधान होने से नय-निशेषादिक के स्वरूपों का वर्णन करते समय तिनसो त्रेसठ । (३६३ ) पाखण्डियो का मत का खण्डन करके, इस अंथ में अईत भगवान् के सिद्धान्तो का सुंदरतापूर्वक प्रतिपादन किया है । | इस ग्रंथ के पठपाठन से भव्य जन जैनदर्शन के सिद्धांतों (द्रव्यानुयोग ) का विस्तृत रूप से मान प्राप्त कर सकते है। प्रस्तुत ग्रंथ मूल-नियुछि-श्रीचीलानापर्व कृत टीका तथा श्रीहर्षकुलगणिकृत दी पिकासह प्रथम उप चुका है। शानी हो तो उसका सार यही है कि वह अपने जात्मज्ञान के कारण विश्वविज्ञान का उपभोग करता हुआ किसी की हिंसा नहीं करना। किसी भी प्रार्गीको न सताता है, न मारता है और न दुःख ही देता है। यहि बहिसा सिद्धान्त है। इसी में विज्ञान अन्तर्भाव हो जाता है। एवं खु नाणिणो सारं न हिंसह किंचण । अहिंसा समय चेव एयावन्तं वियापिया। सूत्रकृताय ।।१४। 101 भाधुनिक विज्ञान और अहिंसा । लेखक:-णेवामुनि साथि, सम्पादक:-सुनि कान्तिसागरी

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