Book Title: Agam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana Publisher: Padma Prakashan View full book textPage 7
________________ आद्य वचन महान् श्रुतधर आचार्य श्री भद्रबाहु स्वामी आचारांग सूत्र का महत्त्व बताते हुए कहते हैंएत्थ य मोक्खोवाओ एत्थ य सारो पवयणस्स। -नियुक्ति ९ आचारांग में मोक्ष-प्राप्ति के उपाय का प्रतिपादन है। यही जिन-प्रवचन का सार है। आचारांग का अध्ययन कर लेने पर श्रमण धर्म को सम्यक् रूप में समझा जा सकता है। आचारांग सूत्र के दो श्रुतस्कन्ध हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध का प्रकाशन गत वर्ष हो चुका है और उसकी प्रस्तावना में उस विषय में संक्षेप में लिखा जा चुका है। आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध को 'आचाराग्र' या 'आचार चूला' कहा जाता है। इसमें मुख्य रूप से श्रमण आचार, साधु के आचार का ही वर्णन है। प्राचीन मान्यता के अनुसार आचारांग का यह द्वितीय श्रुतस्कन्ध पाँच चूलाओं में विभक्त है-हवइ य स पंच चूलो। इनमें से चार चूला आचारांग में आज विद्यमान हैं, पाँचवाँ चूला आचारांग से पृथक् कर 'निशीथ सूत्र' के नाम से एक स्वतंत्र आगम रूप में प्रस्थापित हो गया है। आचारांग में साधु के आचार मर्यादा आदि का विधान है। उस आचार मर्यादा में दोष आदि लगने पर उसकी शुद्धि हेतु प्रायश्चित्त का वर्णन निशीथ में है। इस प्रकार निशीथ सूत्र भी आचारांग से पूर्णतः सम्बन्धित ही है। वर्तमान में आचार चूला की चार चूलाओं में इस प्रकार का विभाजन मिलता है• प्रथम चूला : सात अध्ययन : पच्चीस उद्देशक नाम उद्देशक विषय १. पिण्डैषणा आहार शुद्धि का प्रतिपादन २. शय्यैषणा संयम-साधना के अनुकूल स्थान-शुद्धि का वर्णन ३. इर्थेषणा गमनागमन का विवेक और विधि ४. भाषाजातैषणा भाषा-शुद्धि का विवेक और विधि ५. वस्त्रैषणा वस्त्र-ग्रहण सम्बन्धी विविध मर्यादाएँ ६. पात्रैषणा पात्र-ग्रहण सम्बन्धी विविध मर्यादाएँ ७. अवग्रहैषणा स्थान आदि की अनुमति लेने की विधि इस प्रकार प्रथम चूला के ७ अध्ययन व २५ उद्देशक हैं। ११ س س سه به 2 .. . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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