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ONDON GOGH.A.
द्वितीय चूला के निम्न ७ अध्ययन हैं, ये उद्देशकरहित हैं।
८. स्थान - सप्तिका
९. निषीधिका सप्तिका
१०. उच्चार-प्रनवण-सप्तिका
११. शब्द - सप्तिका
१२. रूप-सप्तिका
१३. पर - क्रिया - सप्तिका
आवास योग्य स्थान का विवेक और विधान स्वाध्याय एवं ध्यान योग्य स्थान- गवेषणा का वर्णन शरीर की दीर्घ-शंका एवं लघु-शंका निवारण की विधि व विवेक
शब्दादि विषयों में राग-द्वेषरहित रहने का उपदेश रूपादि विषयों में राग-द्वेषरहित रहने का उपदेश
दूसरों द्वारा की जाने वाली सेवा आदि क्रियाओं का निषेध
१४. अन्योन्यक्रिया सप्तिका
परस्पर की जाने वाली क्रियाओं में विवेक का वर्णन
१५. तृतीय चूला का एक अध्ययन - भावना है। इसमें भगवान महावीर के उदात्त चरित्र का संक्षेप में वर्णन है। आचार्यों के अनुसार प्रथम श्रुतस्कन्ध में वर्णित आचार का पालन किसने कियाइसी प्रश्न का उत्तर - रूप भगवचरित्र यहाँ प्रतिपादित है । इसी अध्ययन में पाँच महाव्रतों की पच्चीस भावना का वर्णन भी है।
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१६. विमुक्ति - चतुर्थ चूलिका में सिर्फ ग्यारह गाथाओं का एक अध्ययन है। इसमें विमुक्त वीतराग आत्मा का वर्णन है।
आचार्य श्री भद्रबाहु का अभिमत है कि आचार चूला का विषय सूत्ररूप में प्रथम श्रुतस्कन्ध विद्यमान है । इस दूसरे श्रुत श्रुतस्कन्ध में उनका विस्तार है।
पिण्डैषणा, वस्त्रैषणा, पात्रैषणा आदि के सभी सूत्र संकेत रूप में प्रथम श्रुतस्कन्ध में आ चुके हैं। यहाँ पर उनका विस्तारपूर्वक वर्णन है इसलिए यह एक प्रकार से प्रथम श्रुतस्कन्ध का परिशिष्ट या पूरवणी (पूरक) भाग कहा जा सकता है।
आचारांग के कर्त्ता
प्रथम श्रुतस्कन्ध के विषय में यह स्पष्ट धारणा है कि उसके रचयिता भगवान महावीर के प्रथम पट्टधर पंचम गणधर आर्य सुधर्मा स्वामी थे। किन्तु द्वितीय श्रुतस्कन्ध के विषय में भिन्न-भिन्न मत हैं। विभिन्न आचार्यों एवं अनुसंधाताओं ने कहा है - द्वितीय श्रुतस्कन्ध के रचनाकार स्थविर हैं। यह स्थविरकृत आगम है।
प्रश्न होता है स्थविर कौन ?
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आचारांग चूर्णि एवं निशीथ चूर्णिकार के मतानुसार स्थविर का अर्थ है - गणधर । थेरा गणधरा (चूर्णि भाग १, पृ. ४)
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