Book Title: Agam 01 Ang 02 Acharanga Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 9
________________ Mutu. PA.. __ वृत्तिकार शीलांकाचार्य कहते हैं-श्रुत वृद्धैश्चतुर्दशपूर्व विद्भिः-स्थविर का अर्थ है चतुर्दश : पूर्वधर श्रुत-वृद्ध। आचार्य श्री आत्माराम जी म. का अभिमत है यह आगम गणधरकृत है। इसके पक्ष में * उन्होंने अनेक सटीक तर्क प्रस्तुत किये हैं ____ दशवैकालिक सूत्र की संकलना भगवान महावीर के निर्वाण के ५८ वर्ष पश्चात् आर्य शय्यंभव * सूरि ने की। यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि उनके समक्ष आचारांग का द्वितीय श्रुतस्कन्ध विद्यमान था। * आचारांग के पिण्डैषणा अध्ययन को समक्ष रखकर दशवैकालिक के पंचम पिण्डैषणा अध्ययन का पद्यानुवाद जैसा उन्होंने किया। दशवैकालिक के चतुर्थ अध्ययन 'छज्जीवणिकाय' की रचना १५वें 9 भावना' अध्ययन के आधार पर, ‘सुवक्क सुद्धी' नामक सातवें अध्ययन की रचना 'भासाजाय' * चतुर्थ अध्ययन के आधार पर की गई है। इससे यह सिद्ध होता है कि शय्यंभवाचार्य के समक्ष यह । श्रुतस्कन्ध विद्यमान रहा है। इसके अतिरिक्त इसके १५वें भावना अध्ययन का उल्लेख समवायांग * सूत्र में एवं प्रश्नव्याकरण सूत्र में भी आता है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में भी बताया है-भगवान ऋषभदेव ने श्रमण-साधना के लिए २५ भावनाओं के साथ पाँच महाव्रतों का उपदेश दिया। जहा : भावणाज्झयणे। यहाँ भी भावना अध्ययन के अनुसार की सूचना है। इसी प्रकार स्थानांग सूत्र के चतुर्थ स्थान में चार शय्या प्रतिमा, चार वस्त्र प्रतिमा, चार पात्र - प्रतिमा और चार स्थान प्रतिमा का वर्णन भी अचारांग के अनुसार है। सातवें स्थान में सात पिण्डैषणा आदि का उल्लेख इसी सूत्र की विद्यमानता सिद्ध करते हैं। इन सभी साक्ष्यों के विषय ' में यह कहा जा सकता है कि गणधरकृत आगमों में स्थविरकृत आगम का उल्लेख संभव नहीं है। : अतः आचारांग का द्वितीय श्रुतस्कन्ध भी गणधरकृत ही है। (आचारांग की प्रस्तावना) . विविध सांस्कृतिक सामग्री ____ आचारांग में साधु आचार मर्यादा के वर्णन के प्रसंग में प्राचीन भारत की विविध प्रकार की . सांस्कृतिक सामग्री का परिचय भी प्राप्त होता है। जैसे–'इन्द्रमह', 'भूतमह', 'रुद्रमह' आदि लौकिक उत्सवों का वर्णन तत्कालीन समाज की धार्मिक व सांस्कृतिक रीति-रिवाजों की एक झलक प्रस्तुत करता है। ___वस्त्रों के वर्णन के प्रसंग में उस युग में उपलब्ध विविध सूक्ष्म कलात्मक बहुमूल्य वस्त्रों का । . वर्णन तो उस युग की अत्यन्त विकसित समृद्ध वस्त्रकला का स्पष्ट निदर्शन कराता है। । इसी प्रकार पात्रों के वर्णन से भी पता चलता है पात्र निर्माण की कला और मिट्टी धातु काँच + आदि के सुन्दर कलात्मक पात्र उस युग में बनते थे जिन पर सोने, चाँदी के तारों व रंगों से विविध फूलपत्ती, चित्रकारी की जाती थी। GreerCOOTERATOPCHAIRTEPTERRORIES Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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