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प्रकाशकीय
नाणं पयासयरं - ज्ञान सूर्य की भाँति समस्त संसार को प्रकाशित करने वाला अपूर्व प्रकाश स्रोत है। श्रुत सेवा सबसे बड़ी सेवा है। इससे हजारों लाखों लोग सन्मार्ग का, सधर्म का ज्ञान प्राप्त कर अपने जीवन का कल्याण कर सकते हैं।
उत्तर भारतीय प्रवर्तक गुरुदेव राष्ट्रसन्त भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी म. के शिष्यरत्न उपप्रवर्तक श्री अमर मुनि जी महाराज जो स्वयं एक श्रेष्ठ विद्वान् और शास्त्रों के गहन अभ्यासी हैं। आप आगम महोदधि श्रमणसंघ के प्रथम आचार्यसम्राट् श्री आत्माराम जी म. की शिष्य परम्परा के एक तेजस्वी नक्षत्र हैं। आपमें भी अपने पूज्य दादा गुरुदेव की भाँति जिनवाणी के प्रति अपूर्व- अगाध निष्ठा है और उसके प्रचार-प्रसार में अपने जीवन को कृतार्थ करने का महान् संकल्प है। इस वज्र संकल्प और निरन्तर अध्यवसाय का ही यह शुभ परिणाम है कि प्राकृत भाषा में निबद्ध आगमों का हिन्दी एवं अंग्रेजी अनुवाद / विवेचन करके सुरम्य चित्रों के साथ इसका प्रकाशन करवा रहे हैं।
इतना श्रम-साध्य और व्यय-साध्य यह कार्य गुरुदेव की ही कृपा, आशीर्वाद और आपके शुभ प्रयासों से निर्विघ्न सम्पन्न हो रहा है। अब तक आगम ग्रंथमाला में नौ आगम प्रकाशित हो चुके हैं और सर्वत्र इनका स्वागत हुआ है। पाठक इनका रुचिपूर्वक स्वाध्याय कर रहे हैं।
पिछले वर्ष जुलाई में आचारांग सूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध ( एक भाग) प्रकाशित हो चुका है। अब यह दूसरा श्रुतस्कन्ध पाठकों के हाथों में पहुँचाते हुए हमें प्रसन्नता है ।
इस श्रुत-सेवा के कार्य में हमारे सहयोगी श्रीचन्द सुराना 'सरस', अंग्रेजी अनुवादकर्ता सुरेन्द्र बोथरा तथा चित्रकार सरदार पुरुषोत्तमसिंह जी एवं डॉ. त्रिलोक शर्मा जी को हम धन्यवाद देते हैं। साथ ही जिन गुरुभक्तों ने प्रकाशन में तन-मन-धन से सहयोग किया उनके भी हम आभारी हैं।
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विनीत
महेन्द्रकुमार जैन
अध्यक्ष पद्म प्रकाशन
VEDETEKCI
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