Book Title: Acharya Kundkunda Ek Parichay
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 6
________________ अचार्य कुन्दकुन्द : एक परिचय मंगलं भगवान् वीरो, मंगलं गौतमो गणी । मंगलं कुन्दकुन्दार्यो, जैनधर्मोऽस्तु मंगलम् । किसी कार्य को प्रारम्भ करने से पूर्व अपने इष्ट का स्मरण करना, गुणानुवाद गाना, वन्दन/नमस्कार करना मानवीय संस्कृति की एक प्रमुख विशेषता है । यह मानसिक, कायिक अथवा मौखिक किसी भी रूप में हो सकता है। जिससे पापों का नाश और सुख की प्राप्ति हो वह मंगल कहलाता है और इसके लिए की गई क्रिया मंगलाचरण । लोक में ऐसा विश्वास प्रचलित है कि मंगलाचरण से प्रारम्भ किया गया कार्य बिना विघ्न के समाप्त होता है । जो ईश्वर को कर्ता-हर्ता मानते हैं उनका विश्वास है कि मंगलाचरणपूर्वक कार्य करनेवालों की ईश्वर सहायता करता है, उनकी इच्छा पूरी करता है, उद्देश्य सफल करता है। जैन कर्ता-हर्ता ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं करते अतः वे मानते हैं कि महान् आत्माओं की भक्ति तथा गुणगान करने से चित्त में जो एक विशेष प्रकार की निर्मलता आती है उससे शुभकर्मों का पास्रव होकर पुण्यबंध होता है और उसके फलस्वरूप कार्य निर्विघ्न समाप्त होता है। उक्त श्लोक में भगवान् महावीर, गौतम गणधर, कुन्दकुन्दाचार्य तथा जनधर्म का मंगलरूप में स्मरण किया गया है । किसी भी ग्रंथ का स्वाध्याय करने सेप हले तो यह श्लोक पढ़ा ही जाता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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