Book Title: Acharya Kundkunda Ek Parichay
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 16
________________ पंचास्तिकाय का स्वरूप बताया गया है। इस पर पद्मप्रभमलधारीदेव की टीका है। ५. बारसमणवेक्खा-इसमें ६१ गाथाओं में बारह भावनाओं का बड़ा मार्मिक, वैराग्य-उत्पादक वर्णन है। ६. पाहुड़-ऐसा कहा जाता है कि प्राचार्यश्री ने ८४ पाहुड़ों की रचना की थी। वर्तमान में केवल निम्न पाठ पाहुड़ प्राप्त हैं १. दंसणपाहुड़, २. चारित्तपाहुड़, ३. सुत्तपाहुड़, ४. बोहपाहुड़, ५. भाव पाहुड़, ६. मोक्खपाहुड़, ७. लिंगपाहुड़ और ८. सील पाहुड़। ये आठों पाहुड़ अट्ठपाहुड़ (अष्टप्राभृत) के नाम से प्रकाशित हैं, प्रसिद्ध हैं। इनमें शिथिलाचार, विवेकहीनता एवं अंधश्रद्धा का खण्डन किया गया है। ७. भक्तियां-सिद्धभक्ति, सुदभक्ति, चारितभक्ति, जोइभक्ति, आइरियभक्ति, रिणव्वाणभक्ति, पंचगुरुभक्ति तथा तित्थयरभक्ति ये आठ भक्तियां हैं जिनमें उनके नाम के अनुसार सिद्ध, श्रुत आदि की विशेषताएं बताते हुए उन्हें नमस्कार किया गया है । ८. रयणसार-कुछ विद्वान् इसे प्राचार्य कुन्दकुन्द की रचना मानते हैं और कुछ नहीं। इस प्रकार स्पष्ट है कि कुन्दकुन्द एक अभूतपूर्व प्रतिभाशाली आचार्य थे। उनकी रचना-शैली मौलिक थी। वे दिगम्बर परम्परा के संपोषक, संरक्षक, प्रचारक, प्रसारक एक महान् विभूति थे जिनका उपकार कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनका जन्म कुछ शिलालेखों के अनुसार माघशुक्ला ५ (बसन्त पंचमी), ईसा पूर्व १०८ में हुआ था। ४४ वर्ष की आयु [ ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |

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