Book Title: Acharya Kundkunda Ek Parichay
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 4
________________ प्रकाशकीय प्राचार्य कुन्दकुन्द दिगम्बर जैन परम्परा में मूलसंघ के प्रमुख प्राचार्य हैं। प्रत्येक दिगम्बर जैन गृहस्थ, पण्डित, साधु अपने को 'कुन्दकुन्दान्वयी' बताने में गौरव का अनुभव करता है। द्रव्यानुयोग के आद्यप्रणेता आचार्य कुन्दकुन्द ने भगवान् महावीर के मूलमार्ग को अपने ग्रन्थों में गूंथा है, स्पष्ट किया है और उसे सुरक्षित रखा है। प्राचार्यश्री ने दो हजार वर्ष पूर्व जैन वाङ्मय के प्रणयन को गति प्रदान की जिसके लिए समस्त अध्यात्मजगत् उनका चिरऋणी है। आज देश में सर्वत्र उनका द्विसहस्राब्दि वर्ष विभिन्न प्रायोजनों/समारोहों/प्रवृत्तियों के साथ मनाया जा रहा है / प्राचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थ और उनकी टीकाओं के बड़े-बड़े संस्करण बहुतायत से प्राप्त हैं। गूढ़ एवं गम्भीर होने से वे श्रमसाध्य और समयसाध्य हैं / अध्यात्मप्रेमी तो उनका रसपान करते हैं पर आज की भौतिक दौड़ में व्यस्त रहनेवाले सामान्य मनुष्य भी आचार्यश्री के व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व से परिचित हों, कुछ प्रेरणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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