Book Title: Acharya Kundkund aur Unki Krutiya
Author(s): Prabhavati Choudhary
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 1
________________ आचार्य कुन्दकुन्द और उनकी कृतियाँ डॉ. प्रभावती चौधरी कुन्दकुन्दाचार्य की कृतियाँ दिगम्बर जैन सम्प्रदाय में आगमतुल्य स्थान रखती हैं। षट्खण्डागम एवं कसायपाहुड के अध्येता कम हैं, किन्तु आचार्य कुन्दकुन्द की रचनाओं का स्वाध्याय करने वाले बहुत मिलेंगे। दिगम्बरों के सभी उपसम्प्रदायों एवं श्वेताम्बरों में श्रीमद्राजचन्द्र के अनुयायी आचार्य कुन्दकुन्द की कृतियों को ही आगम मानकर स्वाध्याय करते हैं। आचार्य कुन्दकुन्द की कृतियाँ अध्यात्म-प्रधान हैं तथा व्यवहार की अपेक्षा निश्चय नय को अधिक महत्त्व देती हैं। इनमें षड् द्रव्यों एवं नव तत्त्वों का अध्यात्मपरक वर्णन उपलब्ध है। जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग की सहायक आचार्य डॉ० (श्रीमती) प्रभावती चौधरी ने प्रस्तुत आलेख में कुन्दकुन्दाचार्य एवं उनकी कृतियों का परिचय देते हुए वैशिष्ट्य से भी अवगत कराया है। -सम्पादक दिगम्बर जैनाचार्यों में कुन्दकुन्द का नाम सर्वोपरि है। मूर्तिलेखों, शिलालेखों, ग्रन्थप्रशस्तिलेखों एवं पूर्वाचार्यों के संस्मरणों में कुन्दकुन्द का नाम बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है। मंगलं भगवान वीरो, मंगलं गौतमो गणी । मंगलं कुन्दकुन्दार्यो, जैनधर्मोऽस्तु मंगलम् ।।' प्रस्तुत मंगल पद्य में भगवान महावीर एवं गौतम गणी के पश्चात् दिगम्बर परम्परा में आचार्य कुन्दकुन्द को ही मंगल माना है। इनकी प्रशस्ति में कविवर वृन्दावन ने अपने सवैया में कहा है कि कुन्दकुन्द जैसे आचार्य न हुए हैं न होंगे विशुद्धि बुद्धि वृद्धिदा प्रसिद्ध ऋद्धि सिद्धिदा । हुए, न हैं न होंहिगें मुनिंद कुन्दकुन्द से । । कुन्दकुन्दाचार्य के विषय में यह मान्यता प्रचलित है कि वे विदेह क्षेत्र गए थे एवं सीमंधर स्वामी की दिव्यध्वनि से उन्होंने आत्मतत्त्व का स्वरूप प्राप्त किया था। कुन्दकुन्द का परिचय - आचार्य कुन्दकुन्द के अपरनामों का भी उल्लेख प्राप्त होता है। पंचास्तिकाय के टीकाकार जयसेनाचार्य ने कुन्दकुन्द के पद्मनन्दी आदि नामों का उल्लेख किया है। षट् प्राभृत के टीकाकार श्रुतसागरसूरि ने पद्मनन्दी, कुन्दकुन्दाचार्य, वक्रग्रीवाचार्य एलाचार्य, गृध्रपिच्छाचार्य - इन पाँच नामों का उल्लेख किया है। नन्दिसंघ से सम्बद्ध विजयनगर के शिलालेख में (१३८६ ई. के लगभग) भी उक्त पाँच नामों का उल्लेख किया है। किन्तु अन्य शिलालेखों में पद्मनन्दी या कोण्डकुन्द इन दो नामों का उल्लेख मिलता है । चन्द्रगिरि पर्वत का शिलालेख द्रष्टव्य हैवन्द्यो विभुर्भुवि न कैरिह कौण्डकुन्दः, 1. श्वेताम्बर परम्परा में कुन्दकुन्द के स्थान पर स्थूलभद्र का नाम लिया जाता हैमंगलं भगवान वीरो, भंगलं गौतमो गणी | मंगल स्थूलभद्राद्यो, जैन धर्मोऽस्तु मंगलम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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