Book Title: Acharya Kundkund aur Unki Krutiya Author(s): Prabhavati Choudhary Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 8
________________ 516 जिनवाणी- जैना 6. मोक्षपाहुड - इसमें आत्मतत्त्वविवेचन बन्ध-कारण एवं बन्धनाश का निरूपण, आत्मज्ञान की विधि, रत्नत्रय का स्वरूप एवं परम पद की प्राप्ति का वर्णन है। आत्मा के तीन भेदों बहिरात्मा अन्तरात्मा एवं परमात्मा को समझाया गया है। 7. लिंगपाहुड- इसमें भावधर्म की प्रधानता है एवं श्रमणलिंग को लक्ष्य करके मुनिधर्म का निरूपण किया गया है। 8. शीलपाहुड - शील के द्वारा ज्ञान प्राप्ति एवं ज्ञान के द्वारा मोक्ष प्राप्ति का निरूपण है। शील के अंग तपादि का वर्णन है। मोक्ष में मुख्य कारण शील को ही माना गया है। जीवदया इन्द्रियदमन, पंचमहाव्रत, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं तप को शील के अन्तर्गत ही परिगणित किया गया है। रयणसार - इस ग्रन्थ में रत्नत्रय का विवेचन है। कुल १६७ पद्य हैं। किसी-किसी प्रति में १५५ पद्य ही मिलते हैं। इस रचना के कुन्दकुन्दकृत होने के विषय में विद्वानों में मतभेद है। द्वादशानुप्रेक्षा- इसमें बारह प्रकार की अनुप्रेक्षाओं का विस्तार से वर्णन है। हर साधक को इनकी अनुपालना करनी आवश्यक है। इसमें अनित्य, अशरण, एकत्व, अन्यत्व, संसार, लोक, अशुचित्व, आनव, संवर, निर्जरा, धर्म एवं बोध दुर्लभ इन बारह भावनाओं का ९१ पद्मों में निरूपण है। भत्तिसंगहो ( भक्तिसंग्रह ) - इसमें सिद्धों के गुण, भेद, आकृति, श्रुतज्ञान के स्वरूप, पाँच चारित्रों, निर्वाण आदि के वर्णन के साथ निर्वाण प्राप्त तीर्थंकरों की, पंचपरमेष्ठी की स्तुति की गई है। भक्ति की संख्या भी आठ है- १. सिद्धभक्ति २. श्रुत भक्ति ३. चारित्र भक्ति ४. योगि भक्ति ५. आचार्य भक्ति ६. निर्वाण भक्ति ७ पंचगुरुभक्ति ८. कोस्सामि थुदी । इस प्रकार शौरसेनी प्राकृत के आगम ग्रन्थों में कुन्दकुन्द की कृतियों का स्थान सर्वोपरि माना जाता है। कुन्दकुन्द के ग्रन्थों का वैशिष्ट्य कुन्दकुन्द के समस्त ग्रन्थों का पर्यालोचन करने से कुन्दकुन्द साहित्य की कतिपय विशेषताओं का स्वरूप प्रकट होता है। कुन्दकुद का नय - विषयक विचार, अध्यात्मविषयक दृष्टि एवं शील का निरूपण विशिष्ट है । नय विषयक विचार- नयों का निरूपण करने वाले आचार्यों ने नय का शास्त्रीय एवं आध्यात्मिक दृष्टि से विवेचन किया है। शास्त्रीय दृष्टि से नय - विवेचना में नय के द्रव्यार्थिक, पर्यायार्थिक तथा नैगमादि सात भेद निरूपित किये गए हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से निश्चय एवं व्यवहार नय का निरूपण है। कुन्दकुन्द के मत में संसारावस्था में निश्चय एवं व्यवहार समान रूप से उपयोगी हैं, किन्तु मोक्षावस्था में निश्चय की ही उपयोगिता है, व्यवहार For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.orgPage Navigation
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