Book Title: Acharya Kundkund aur Unki Krutiya
Author(s): Prabhavati Choudhary
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 9
________________ अनुपयोगी है। कुन्दकुन्द ने अन्याचार्यो द्वारा कथित निश्चय के दो भेदशुद्ध निश्चय एवं अशुद्ध निश्चय को भी दर्शाया है, किन्तु शुद्ध निश्चय की ही उपयोगिता सिद्ध करते हुए अशुद्ध को ही व्यवहार माना है। जैसे वेदान्त में ब्रह्म ही परम सत्य एवं जगत् मिथ्या है उसी प्रकार अध्यात्म विचारणा में शुद्ध बुद्ध परमात्मा ही सत् है एवं उसकी अन्य समस्त दशाएँ व्यवहार सत् हैं। निश्चयदृष्टि को परमार्थ एवं व्यवहारदृष्टि को अपरमार्थ कहा गया है। निश्चय दृष्टि ही भूतार्थ है क्योंकि मुमुक्षु को वही आत्मा के शुद्ध स्वरूप का दर्शन कराती है। व्यवहार दृष्टि अभूतार्थ है। जैसे म्लेच्छ को समझाने के लिए म्लेच्छ भाषा का आश्रय लेना पड़ता है उसी प्रकार बंध में पड़े जीव को समझाने के लिए व्यवहार का आश्रय लेना पड़ता है। समयसार में आध्यात्मिक दृष्टि से ही नयों का वर्णन हैं। अत: निश्चय नय एवं व्यवहार नय के द्वारा शुद्धात्मा का स्वरूप वर्णन किया गया है। किन्तु प्रवचनसार एवं पंचास्तिकाय में द्रव्य विवेचन का विषय होने के कारण शास्त्रीय दृष्टि से द्रव्यार्थिक एवं पर्यायार्थिक नय का वर्णन प्राप्त होता है। द्रव्यार्थिक नय द्रव्य को आधार बनाकर एवं पर्यायार्थिक नय पर्याय को आधार बनाकर प्रवृत्त होता है। निश्चय एवं व्यवहार अथवा द्रव्यार्थिक एवं पर्यायार्थिक नय के विरोध का अन्त करने वाला अनेकान्त सिद्धान्त है। अमृतचन्द्राचार्य ने इसे इस प्रकार दर्शाया है उभयनयविरोधध्वंसिनि स्यात्पदाके. जिनवचसि रमन्ते ये स्वयं वान्तमोहाः। सपदि समयसारं ते परं ज्योतिरुच्च, रन्वमनयपक्षाक्षुण्णमीक्षन्त एव।। आध्यात्मिक दृष्टि- कुन्दकुन्द के समस्त ग्रन्थों में शुद्धात्मा के स्वरूप की प्राप्ति एवं मोक्ष को प्रधान बनाकर ही विषय की चर्चा की गई है। अत: कई स्थानों पर विषयों की पुनरुक्ति भी मिलती है। मोक्षमार्ग में अचेलक व्रत की महिमा कुन्दकुन्द को दिगम्बर परम्परा को धोतित करती है। संसारावस्था में जीव के बन्धकारणों की विस्तृत चर्चा एवं उससे निवृत्ति के लिए रत्नत्रय का निरूपण कुन्दकुन्द के ग्रन्थों की मुख्य विशेषता है। कुन्दकुन्द ने मोक्ष में यथार्थज्ञान एवं दर्शन के साथ चारित्र पर अत्यधिक बल दिया है। उनके मत में मात्र ज्ञान एवं दर्शन से दीर्घकाल ऐसे ही बीत जाता है, किन्तु ज्ञान एवं दर्शन के साथ चारित्र को अंगीकार करने से अन्तर्मुहूर्त में भी मोक्ष संभव है। इसके अतिरिक्त कुन्दकुन्द ने अपने ग्रन्थों में तप की अपेक्षा भेद-विज्ञान को अधिक महत्त्व दिया है। अन्य आचार्य कर्म-निर्जरा में तप को महत्त्व देते हैं, किन्तु कुन्दकुन्द के अनुसार तप के होने पर भी भेद विज्ञान के अभाव में संवर एवं निर्जरा असंभव है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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