Book Title: Acharya Hemchandra Ek Yugpurush
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_3_001686.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ ६२ आचार्य हेमचन्द्र : एक युगपुरुष । प्रभावित होकर कुमारपाल ने जैनधर्मानुयायी बनकर जैनधर्म की प्रर्याप्त प्रभावना की, किन्तु कुमारपाल के धर्म-परिवर्तन या उनको जैन बनाने में हेमचन्द्र का कितना हाथ था, यह विचारणीय ही है। वस्तुत: हेमचन्द्र के द्वारा न केवल कुमारपाल की जीव-रक्षा हुई थी अपितु उसे राज्य भी मिला था। यह तो आचार्य के प्रति उसकी अत्यधिक निष्ठा ही थी जिसने उसे जैनधर्म की ओर आकर्षित किया। यह भी सत्य है कि हेमचन्द्र ने उसके माध्यम से अहिंसा और नैतिक मूल्यों का प्रसार करवाया और जैनधर्म की प्रभावना भी करवाई किन्तु कभी भी उन्होंने राजा में धार्मिक कट्टरता का बीज नहीं बोया। कुमारपाल सम्पूर्ण जीवन में शैवों के प्रति भी उतना ही उदार रहा, जितना वह जैनों के प्रति था। यदि हेमचन्द्र चाहते तो उसे शैवधर्म से पूर्णत: विमुख कर सकते थे, पर उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया बल्कि उसे सदैव ही शैवधर्मानुयायियों के साथ उदार दृष्टिकोण रखने का आदेश दिया। यदि हेमचन्द्र में धार्मिक संकीर्णता होती तो वे कुमारपाल द्वारा सोमनाथ मन्दिर का जीणोद्धार करा कर उसकी प्रतिष्ठा में स्वयं भाग क्यों लेते? अथवा स्वयं महादेवस्तोत्र की रचना कर राजा के साथ स्वयं भी महादेव की स्तुति कैसे कर सकते थे? उनके द्वारा रचित महादेवस्तोत्र इस बात का प्रमाण है कि वे धार्मिक उदारता के समर्थक थे। स्तोत्र में उन्होंने शिव, महेश्वर, महादेव, आदि शब्दों की सुन्दर और सम्प्रदाय निरपेक्ष व्याख्या करते हुए अन्त में यही कहा है कि संसाररूपी बीज के अंकूरों को उत्पन्न करनेवाले राग और द्वेष जिसके समाप्त हो गए हों उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ, चाहे वे ब्रह्मा हों, विष्णु हों, महादेव हों अथवा जिन हों। धार्मिक सहिष्णुता का अर्थ मिथ्या-विश्वासों का पोषण नहीं यद्यपि हेमचन्द्र धार्मिक सहिष्णुता के समर्थक हैं, फिर भी वे इस सन्दर्भ में सतर्क हैं कि धर्म के नाम पर मिथ्याधारणाओं और अन्धविश्वासों का पोषण न हो। इस सन्दर्भ में वे स्पष्ट रूप से कहते हैं कि जिस धर्म में देव या उपास्य रागद्वेष से युक्त हों, धर्मगुरु अब्रह्मचारी हों और धर्म में करुणा व दया के भावों का अभाव हो, ऐसा धर्म वस्तुत: अधर्म ही है। उपास्य के सम्बन्ध में हेमचन्द्र को नामों का कोई आग्रह नहीं, चाहे वह ब्रह्मा हो, विष्णु हो, शिव हो या जिन, किन्तु उपास्य होने के लिये वे एक शर्त अवश्य रख देते हैं, वह यह कि उसे राग-द्वेष से मुक्त होना चाहिये। वे स्वयं कहते हैं कि - भवबीजांकुरजननरागद्याक्षयमुपागतास्य ब्रह्मा वा विष्णुर्वा हरो वा जिनो वा नमस्तस्मै ।।" इसी प्रकार गुरु के सन्दर्भ में भी उनका कहना है कि उसे ब्रह्मचारी या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11