Book Title: Acharya Hemchandra Ek Yugpurush Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_3_001686.pdf View full book textPage 8
________________ आचार्य हेमचन्द्र : एक युगपुरुष ६७ करने वाला जो न तो अधिक खुला हो न अति गुप्त, ८. सदाचारी व्यक्तियों के सत्संग में रहने वाला, ९. माता-पिता की सेवा करने वाला, १०. अशान्त तथा उपद्रव युक्त सत्संग स्थान को त्याग देनेवाला, ११. निन्दनीय कार्य में प्रवृत्ति न करने वाला, १२. आय के अनुसार व्यय करने वाला, १३. सामाजिक प्रतिष्ठा एवं समृद्धि के अनुसार वस्त्र धारण करने वाला, १४, बुद्धि के आठ गुणों से युक्त, १५. सदैव धर्मोपदेश का श्रवण करने वाला, १६. अजीर्ण के समय भोजन का त्याग करने वाला, १७. भोजन के अवसर पर स्वास्थ्यप्रद भोजन करने वाला, १८. धर्म, अर्थ और काम इन तीनों वर्गों का परस्पर विरोध रहित भाव से सेवन करने वाला, १९. यथाशक्ति अतिथि, साधु एवं दीन-दुःखियों की सेवा करने वाला, २०. मिथ्या-आग्रहों से सदा दूर रहने वाला, २१. गुणों का पक्षपाती, २२. निषिद्ध देशाचार और कालाचार का त्यागी, २३. अपने बलाबल का सम्यक ज्ञान करने वाला और अपने बलाबल का विचार कर कार्य करने वाला, २४. व्रत, नियम में स्थिर; ज्ञानी एवं वृद्ध जनों का पूजक, २५. अपने आश्रितों का पालन-पोषण करने वाला, २६. दीर्घदर्शी, २७. विशेषज्ञ, २८. कृतज्ञ, २९. लोकप्रिय, ३०. लज्जावान, ३१. दयालु, ३२. शान्तस्वभावी, ३३. परोपकार करने में तत्पर, ३४. कामक्रोधादि अन्तरंग शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला और ३५. अपनी इन्द्रियों को वश में रखने वाला व्यक्ति ही गृहस्थ धर्म के पालन करने योग्य है।"१४ वस्तुत: इस समग्र चर्चा में आचार्य हेमचन्द्र ने एक योग्य नागरिक के सारे कर्तव्यों और दायित्वों का संकेत कर दिया है और इस प्रकार एक ऐसी जीवनशैली का निर्देश किया है, जिसके आधार पर सामंजस्य और शान्तिपूर्ण समाज का निर्माण किया जा सकता है। इससे यह भी फलित होता है कि आचार्य हेमचन्द्र सामाजिक और पारिवारिक जीवन की उपेक्षा करके नहीं चलते, वरन् वे उसे उतना ही महत्त्व देते हैं जितना आवश्यक है और वे यह भी मानते हैं कि धार्मिक होने के लिये एक अच्छा नागरिक होना आवश्यक है। हेमचन्द्र की साहित्य साधना'५ हेमचन्द्र ने गुजरात को और भारतीय संस्कृति को जो महत्वपूर्ण अवदान दिया है, वह मुख्यरूप से उनकी साहित्यिक प्रतिभा के कारण ही है। इन्होंने अपनी साहित्यिक प्रतिभा के बल पर ही विविध विद्याओं में ग्रन्थ की रचना की। जहाँ एक ओर उन्होंने अभिधान-चिन्तामणि, अनेकार्थसंग्रह, निघंटुकोष, और देशीनाममाला जैसे शब्दकोषों की रचना की, वहीं दूसरी ओर सिद्धहेम शब्दानुशासन, लिङ्गानुशासन, धातुपारायण जैसे व्याकरण ग्रन्थ भी रचे। कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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