Book Title: Acharya Hastimalji ki Itihas Drushti
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Z_Jinvani_Acharya_Hastimalji_Vyaktitva_evam_Krutitva_Visheshank_003843.pdf

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Page 1
________________ प्राचार्य श्री की इतिहास-दृष्टि -डॉ. भागचन्द जैन भास्कर प्रज्ञा-पुरुष आचार्य श्री हस्तीमलजी म. सा. जैन जगत् के जाज्वल्यमान् नक्षत्र थे, सद्ज्ञान से प्रदीप्त थे, आचरण के धनी थे, सजग साधक थे और थे इतिहास-मनीषी, जिन्होंने 'जैन धर्म का मौलिक इतिहास' लिखकर शोधकों के लिए एक नया आयाम खोला है। इस ग्रन्थ के चार भाग हैं जिनमें से प्रथम दो भाग प्राचार्य श्री द्वारा लिखे गये हैं और शेष दो भागों में उन्होंने मार्गदर्शक के रूप में कार्य किया है। इनके अतिरिक्त 'पट्टावली प्रबन्ध संग्रह' और 'प्राचार्य चरितावली' भी उनकी कुशल इतिहास-दृष्टि के साक्ष्य ग्रंथ हैं। इन ग्रंथों का निष्पक्ष मूल्यांकन कर हम उनकी प्रतिभा का दर्शन कर सकेंगे। जैन धर्म का मौलिक इतिहास प्रथम खण्ड सं. २०२२ के बालोतरा चातुर्मास के निश्चयानुसार आचार्य श्री सामग्री के संकलन में जुट गये। उनके इस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए श्री गजसिंह राठौड़ का विशेष सहयोग रहा । सं. २०२३ के चातुर्मास (अहमदाबाद) में प्रथम खण्ड का लेखन कार्य विधिवत् आरम्भ हुआ। इसमें चौबीस तीर्थङ्करों तक का इतिहास समाहित है। जैन धर्म का आदिकाल इस अवसर्पिणी काल में २४ तीर्थङ्करों में आदिनाथ ऋषभदेव से प्रारम्भ होता है। इसके लेखन में लेखक ने आगम ग्रन्थों के साथ ही जिनदासगरिण महत्तर (ई. ६००-६५०), अगस्त्यसिंह (वि. की तृतीय शताब्दी), संघदास गणि (ई. ६०६), जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण (वि. सं. ६४५), विमल सूरि (वि. सं. ६०), यति वृषभ (ई. चतुर्थ शती), जिनसेन (ई. हवीं शती), गुणभद्र, रविषेण (छठी शती), शीलांक (नवीं शती), पुष्पदन्त (नवीं शती), भद्रेश्वर (११वीं शती), हेमचन्द्र (१३वीं शती), धर्म सागर गणि (१७वीं शती) आदि के ग्रन्थों को भी आधार बनाया। उन्होंने प्रथमानुयोग को धार्मिक इतिहास का प्राचीनतम शास्त्र माना है और जैन इतिहास को पूर्वाचार्यों Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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