Book Title: Acharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Author(s): Uttamchand Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 6
________________ श्राचार्य अमृतचन्द्र ने जिन - अध्यात्म के प्रतिष्ठापक प्राचार्य कुन्दकुन्द के अध्यात्म को श्रात्मसात् कर, उन्हीं के ग्रन्थों पर लिखी गई टोकाओं के माध्यम से जिन अध्यात्म को ऐसा मृदुल किन्तु सशक्त रूप प्रदान किया कि लोगों को कुन्दकुन्द के समय मार से भी अधिक महिमा आचार्य अमृतचन्द्र कृत समयसार की आत्मस्याति टीका की आने लगी। इससे बड़ी सफलता आचार्य अमृतचन्द्र की और क्या हो सकती थी ? इस सन्दर्भ में प्राचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी जैसे वरिष्ठ आत्मार्थी विज्ञान का निम्नांकित कथन द्रष्टव्य है - - "वर्तमान काल में अध्यात्मतत्व तो श्रात्मख्याति समयसार प्रन्थ की अमृतचन्द्र आचार्यकृत टीका में है और ग्रागम की चर्चा गोम्मटसार में है तथा और अन्य ग्रन्थों में है । - जो जानते हैं, वह लिखने में आबे नहीं, इसलिए तुम भी अध्यात्म तथा आगम ग्रन्थों का अभ्यास रखना और स्वरूपानन्द में मग्न रहना ।' — इसमें विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि आचार्यकल्प पडित टोडरमलजी सुदूरवर्ती मुलताननगर में रहने वाले साधर्मी भाइयों को श्रध्यात्म के अध्ययन के लिए आचार्य अमृतचन्द्र की आत्मख्याति टीका के अध्ययन की सलाह देते हैं । अध्यात्म की गहराई जानने के लिए एकमात्र आत्मस्याति को सलाह देने वाले टोडरमलजी के हृदय में ग्रात्मख्याति और उसके कर्त्ता आचार्य अमृतचन्द्र की कितनी महिमा होगी ? इसकी कल्पना सरलता से की जा सकती है । सचमुच ही स्वरूपगुप्त अमृतचन्द्र जिन अध्यात्म के स्तम्भ हैं । जिन अध्यात्म की परम्परा में आचार्य कुन्दकुन्द के बाद यदि किसी का निर्विवाद रूप से नाम लिया जा सकता है तो वे हैं - स्वरूपगुप्त प्राचार्य अमृतचन्द्र, जिनका प्रत्येक पद अध्यात्म-अमृत से सराबोर है । "स्वरूप गुप्त" आचार्य अमृतचन्द्र की एक ऐसी उपाधि है, जिसे उन्होंने स्वयं ली है और जो उनके जीवन और भावना को अभिव्यक्त करने में पूर्णतः समर्थ है | आत्मख्याति के अन्तिम छन्द में उक्त उपाधि को अपने नाम के साथ जोड़ते हुए वे लिखते हैं - १. "स्वशक्तिसंसूचित वस्तुतत्वर्व्याख्या कृतेयं समयस्य शब्दः । स्वरूपगुप्तस्य न किन्चिदस्ति कर्त्तव्यमेवामृत चन्द्रसूरेः ।। रहस्यपूर्ण चिट्टी, अन्तिम पृष्ठ ( vi )

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