Book Title: Acharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Author(s): Uttamchand Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 11
________________ अध्यात्म रसिक होने से प्राचार्य अमृत चन्द्र मेरे अत्यन्त प्रिय प्राचार्य रहे हैं। उनकी कृतियों में अध्ययन - अध्यापत में मुझे अद्भुत प्रानन्द का अनुभव होता है। जब भी कोई शोधार्थी मुभसे शोध के लिए विषय के सम्बन्ध में सलाह लेने नाता तो मैं कोह विषय समार कोई इस विषय पर शोध - प्रवन्ध लिखने का साहस नहीं जुटा पाया । जब डॉ. उत्तमचन्दजी जैन ने भी मुझ से शोध के लिए विषय चनने में सहयोग मामा नो ने अपनी रुचि के अनुसार उन्हें भी यही विषय सुझाया ।। मुझे अत्यन्त प्रसन्नता है कि उन्होंने मेरी बात का वजन अनुभव करत हाए प्राचार्य अमृतचन्द्र पर शोधकार्य करने का निश्चय किया । यदि यह विषय और कोई ले लेता तो निश्चित ही इस स्तर का कार्य होना सम्भव नहीं था । डॉ. उत्तमचन्दजी व्यत्पन्न विद्वान तो है हो, अध्यात्मरसिक भी हैं। अतः उन्होंने पूरे मनोयोग से इस कार्य को सम्पन्न किया है और अपनी शोध - खोज को सुन्दरतम रूप में प्रस्तुत करने में वे पूर्णतः सफल हुए हैं। उनकी भावना थी कि उनकी इस कृति को प्रस्तावना भी मैं ही लिन्दू, क्योंकि मेरा यह प्रिय विषय भी है और मैंने ही उन्हें वह विषय सुझाया था। जितनी विस्तृत और सर्वांग प्रस्तावना मैं लिखना चाहता था, उतना समय मुझे नहीं मिल पा रहा था। अत: मैंने उनसे अनुरोध किया कि आप यह काम किसी अन्य योग्यतम विद्वान से करा लें, पर उनका आग्रह बना ही रहा । परिणामस्वरूप जो भी, जैसी भी प्रस्तावना मै लिख सका हूं, वह आपके समक्ष है। वैसे तो सम्बन्धित सम्पूर्ण विषयवस्तु को उन्होंने अपने शोध-प्रबन्छ में समेट ही लिया है, फिर भी उनके अाग्रह - अनुरोध से मुझे भी प्राचार्य अमृतचन्द्र को अपने श्रद्धासुमन समर्पित करने का अवसर सहज ही मिल गया है - तदर्थ मैं उनका प्रभारी हूं। ग्राशा है विज्ञजन अथक श्रम से सम्पन्न इस स्तरीय शोधकार्य से अवश्य लाभ उठायेंगे । २७ अक्टुबर १९८७ १. डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल

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