Book Title: Acharya Amrutchandra Vyaktitva Evam Kartutva
Author(s): Uttamchand Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 14
________________ प्रभाव परवर्ती याचार्यों, भट्टारकों तथा विद्वानों पर सप्रमाण स्पष्ट किया गया। चतुर्थ 1 में उनकी कृतियों का अनुशीलन निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया - परिचय नामकरण कर्तृवि, प्रामाणिकता, आधारस्रोत विषयवस्तु पाठानुसंधान, परम्परा, प्रणाली, वैशिष्ट्य, विभिन्न टीकायें, ताड़पत्रीय व हस्तलिखित पाण्डुलिपियां, प्रकाशन एवं संस्करण । कृतियों में पुरुषार्थसिद्ध युपाय ( मौलिक कृति), ग्रात्मस्याति, तत्वप्रदीपिका तथा समयव्याख्या (संस्कृत गद्य टीकायें), तत्त्वार्थसार (पच टीका ) तथा लघुतत्त्वस्फोट (नवीनतम उपलब्ध मौलिक स्तोत्रकाव्य) मुख्य हैं । 2 पंचम अध्याय में उनकी कृतियों का साहित्यिक मूल्यांकन भाषा, शैली, अलंकार, छंद, रस एवं गुण के आधार पर किया गया । षष्ठम अध्याय में दार्शनिक विचारों का अध्ययन निश्चय व्यवहार अनेकांत स्याद्वाद निमित्त उपादान, कर्ता कर्म यादि शीर्षकों द्वारा किया गया। सप्तम अध्याय में आचार्य अमृतचन्द्र के धार्मिक विचारों को मुनि के योग्य याचरणों अर्थात् मुनि-याचार एवं ज्ञानी श्रावकों के योग्य सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं देशव्रत रूप श्राचरणों को श्रावकाचार के रूप में स्पष्ट किया गया । अष्टम अध्याय में उपसंहार करते हुए प्राचार्य अमृचन्द्र के मौलिक वैशिष्ट्य अध्यात्मवाद के लिए उनका योगदान तथा वर्तमान युम को उनकी देन इन बिन्दुों को आलोकित किया गया है । अंत में संदर्भ ग्रंथों की सूची एवं गोत्रोपयोगी सामग्री प्राप्ति में सहयोगी ग्रंथालयों की सूची प्रस्तुत करके शोध प्रबन्ध समाप्त किया है। इस शोध कार्य में गुरुवर्य डा. श्रीमान् हरीन्द्रभूषण जी जैन का निरंतर सम्पर्क एवं बहुमुच्य मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है. अतः बोध प्रबन्धका कार्य प्रगति एवं पूर्णता को प्राप्त हो सका । एतदर्थ में उनका चिरऋणी एवं अत्यंत आभारी हूँ । जेन सिद्धान्त भर्मज्ञ विद्वत्त्त आदरणीय श्रीमान् पं. फूलचन्द जी शास्त्री बनारस की मेरे ऊपर महती कृपा रही। उन्होंने मुझे अपने घर रखकर लगभग आठ दिन तक कई घण्टे मनोयोग पूर्वक शोध प्रबन्ध की प्रगति में अमूल्य योगदान दिया। उनकी प्रकाण्ड विद्वत्ता तथा { xiv }

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