Book Title: Acharanga Sutra Satikam Part 01
Author(s): Jinendrasuri, 
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 3
________________ * सम्पादकीय निवेदन * निष्कारणबंधु विश्ववन्सल चरमशासनपति श्रमणभगवान महावीरदेवे भव्यजीवोना हितने माटे स्थापेल शासन आजे विद्यमान छ अने विषमकालमा पण भव्य जीवोने माटे सर्वज्ञ, परमात्मानुए शासन परम आलंबन रूप के. तीर्थकरदेवोनी अविद्यमानतामा तेओश्रीनी वाणी शासनना प्राण स्वरूप होय छे. श्री तीर्थकरदेवो अर्थथी प्ररूपेल अने गणधरदेवो सूत्रथी गूथेल अजिनवाणी हितकांक्षी पुन्यात्माओ माटे अमृत तुन्य छे.. विद्यमान आगम श्रुतज्ञाना मुख्यतया ४५ आगम गणाय छे. ते उपरांत पण ८४ आगमनी गणतरीने हिमाबे बीजु पण केटलुक आगम रूपी श्रुतज्ञान विद्यमान छे. आगम सूत्रो उपर नियुक्तिओ, भाप्यो, चूर्णिओ अने टीकाओ रचाइ छे. अने अथी सूत्र सहित आगमनी अचांगी जैन शासना मान्य छे. तेना आधार वर्तमान ज्ञाना. चार. दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार अने वीर्याचार रूप व्यवहार प्रवर्ते छे. सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान अने' सम्यगचारित्र रूप मुक्ति-मार्ग प्रवर्तमान छे. . पंचांगीनो वाचना, पृच्छना, परावर्तना, अनुप्रेक्षा अने धर्मकथा रूप पंचलक्षण स्वाध्याय नेटलो जोरदार तेटली श्री संघमा सम्यग ज्ञाननी शुद्धि जोरदार, तेनाथी ज्ञानाचार उज्वल, उज्वल ज्ञानाचारथी दर्शनाचार उज्वल,

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