Book Title: Acharanga Sutra Satikam Part 01
Author(s): Jinendrasuri,
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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॥ अहम् ॥ पञ्चमगणभृत्श्रीसुधर्मस्वामिविरचितं श्रुतकेवलीश्रीभद्रबाहुस्वामि-दृब्धनियुक्तियुतंसूरिपुरंदर श्रीशीलाङ्काचार्यविहित-विवरणसमन्वितं श्रीआचारागसूत्रम् ।
-::ॐनमः सर्वज्ञाय ॥ जयति समस्तवस्तु-पर्याय-विचारापास्त-तीर्थिकं, विहितैकैकतीर्थ-नयवाद-समूह-वशात्प्रतिष्ठितम् । बहुविधभङ्गि-सिद्धसिद्धान्त-विधूनित-मलमलीमसं,तीर्थमनादिनिधनगत-मनुपममादिनतं जिनेश्वरैः॥१॥(स्कन्दकच्छन्द.)आचारशास्त्रं सुविनिश्चितं यथा, जगाद वीरो जगते हिताय यः। तथैव किश्चिद्गदतः स एव मे, पुनातु धीमान् विनयापिता गिरः ॥२॥ शस्त्रपरिज्ञा-विवरण-मतिबहुगहनं च गन्धहस्तिकृतम् । तस्मात् सुखबोधार्थ गृणाम्यहमञ्जसा सारम्॥३॥ इह हि रागद्वेषमोहाद्यभिभूतेन सर्वेणापि संसारिजन्तुना शारीरमानसानेकातिकटुक-दुःखोपनिपातपीडितेन तदपनयनाय
आ. सू.१

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