Book Title: Abhidhan Rajendra kosha Part 4
Author(s): Rajendrasuri
Publisher: Abhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha

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Page 11
________________ वस्तुतत्त्व जो 'अभिधान राजेन्द्र' में है, वह अन्यत्र हो या न हो; पर जो नहीं हैं; वह कहीं नहीं है। यह महान ग्रन्थ जिज्ञासु की तमाम जिज्ञासाएँ पूर्ण करता है । भारतीय संस्कृति में इतिहास पूर्व काल से कोश साहित्य की परंपरा आज तक चली आ रही है । निधटु कोश में वेद की संहिताओं का अर्थ स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया है। 'यास्क' की रचना 'निरुक्त' में और पाणिनी के 'अष्टाध्यायी' में भी विशाल शब्दस ंग्रह दृष्टिगोचर होता है। शब्दसंग्रह ये सब काश गद्य लेखन में हैं । इसके पश्चात् प्रारंभ हुआ पद्य रचनाकाल । जेा केाश पद्य में रचे गये, वे दो प्रकार से रचे गये । एक प्रकार है, एकार्थक काश और दूसरा प्रकार है - अनेकार्थक काश ! कात्यायन की ' नाममाला', वाचस्पति का ' शब्दार्णव', विक्रमादित्य का ' शब्दार्णव ' भागुरी का ' त्रिकाण्ड' और धन्वन्तरी का निघण्टुः इनमें से कुछ प्राप्य हैं और कुछ अप्राप्य । उपलब्ध केशों में अमरसिह का 'अमरकोश' बहु प्रचलित है। धनपाल का ' पाइय लच्छी नाम माला २७९ गाथात्मक है और एकार्थक शब्दों का बोध कराता है। इसमें ९९८ शब्दों के प्राकृत रूप प्रस्तुत किये गये हैं। आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरिजीने पाइयच्छो नाम माळा' पर प्रामाणिकता की मुहर लगाई है। " धनजयने ' धनन्जय नाम माला' में शब्दान्तर करने की एक विशिष्ट पद्धति प्रस्तुत की है। 'घर' शब्द के योग से पृथ्वी वाचक शब्द पर्वत वाचक वन जाते हैं-जैसे भूधर, कुधर, इत्यादि । इस पद्धति से अनेक नये शब्दों निर्माण होता है। इसी प्रकार धनञ्जयने ' अनेकार्थ नाममाला' की रचना भी की है । कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य के ' अभिधान चिन्तामणि ', 'पद' और 'देशी नाममाला आदि कोश प्रन्थ सुप्रसिद्ध है । 6 4 6 6 इसके अलावा 'शिलांछ कोश', नाम कोश', शब्द 'चन्द्रिका', 'सुन्दर प्रकाश शब्दार्णव', 'शब्दभेद नाममाला', 'नाम सप्रद', 'शारदीय नाममाला', 'शब्द रत्नाकर', 'अव्ययकाक्षर नाममाला', 'शेष नाममाला', 'शब्द सन्दोह संग्रह ', ' शब्द रान प्रदीप', शब्द रत्न प्रदीप', 'विश्वलेोचन कोश', 'नानार्थ कोश', 'पंचवर्ग सग्रह नाम माला', .' अपवर्ग नाम माला', 'एकाक्षरी - नानार्थ कोश', एकाक्षर नाममालिका', 'एकाक्षर कोश', एकाक्षर नाममाला', 'द्वयक्षर कोश', 'देश्य निर्देश निघण्टु', 6 पाइय समद्दण्णव, 'अर्धमागधी डिक्शनरी', 'जैनागम कोश', 'अल्पपरिचित सैद्धान्तिक कोश', जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश' इत्यादि अनेक काश पन्थ भाषा के अध्ययनार्थ रचे गये हैं । 6 Jain Education International अनेकार्थ संग्रह', 'निघण्टु अलग इनमें से कई काश ग्रन्थ 'अभिधान राजेन्द्र' के पूर्व प्रकाशित 'अभिधान राजेन्द्र के पूर्व प्रकाशित हुए हैं और कुछ पश्चात् भी । अभिधान राजेन्द्र' की अपनी विशेषता है। इसी विशेषता के कारण यह आज भी समस्त काश ग्रन्थों का सिरमौर बना हुआ है सच तो यह है कि जिस प्रकार सूर्य को दिया दिखाने की आवश्यकता नहीं होती; उसी प्रकार इस महा ग्रन्थ को प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं है। सूर्य स्वयमेव प्रकाशित है और यह ग्रन्थराज भी स्वयमेव प्रमाणित है। फिर भी इसकी कुछ विशेषताए प्रस्तुत । करना अप्रासंगिक तो नहीं होगा। For Private & Personal Use Only 6 www.jainelibrary.org

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