Book Title: Aatma ka Darshan Author(s): Jain Vishva Bharti Publisher: Jain Vishva Bharti View full book textPage 7
________________ (छह) मुक्त होता है, इसलिए संकल्प-विकल्प अपने आप समाप्त हो जाते हैं। उन्हें जन्म देने वाली तृष्णा भी नाम शेष हो जाती है। उत्तराध्ययन का सूक्त है _____एवं ससंकप्पविकप्पणासो संजायई समयमुवट्ठियस्स। उमास्वाति ने सम्यग्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्र को मोक्षमार्ग बतलाया। प्रस्तुत ग्रंथ में समता को पहला और सम्यग्दर्शन को दूसरा स्थान दिया गया। समता आचरण भी है और दृष्टिकोण को सम्यक् बनाने का साधन भी। सम्यग्दर्शन होने पर समता फलित होती है। यह सिद्धांत अबाधित है, किन्तु इस सिद्धांत को भी कम महत्त्व नहीं दिया जा सकता कि समता की प्रतिष्ठा होने पर दृष्टिकोण अपने आप सम्यक् बन जाता है। पच्चीस सौ वर्ष पुरानी बात है। मगध सम्राट श्रेणिक की यशोगाथा दिग्-दिगंत में व्याप्त थी। उनकी पट्टरानी का नाम धारिणी था। एक बार वह अपने सुसज्जित शयनागार में सो रही थी। अपररात्रि की वेला में उसको एक स्वप्न आया। उसने देखा-'एक विशालकाय हाथी लीला करता हुआ उसके मुख में प्रवेश कर रहा है।' स्वप्न को देख वह उठी। महाराज श्रेणिक को निवेदन कर बोली-प्रभो! इसका क्या फल होगा ? 'महराज श्रेणिक ने स्वप्नपाठकों को बुलाकर स्वप्न पूछा। उन्होंने कहा-'राजन्! रानी ने उत्तम स्वप्न देखा है। फलस्वरूप आपको अर्थलाभ होगा, पुत्रलाभ होगा, राज्यलाभ होगा और भोगसामग्री की प्राप्ति होगी। राजा और रानी बहुत प्रसन्न हुए। समय बीता। महारानी ने गर्भ धारण किया। दो महीने व्यतीत हुए। तीसरा महीना चल रहा था। रानी के मन में अकाल में मेघों के उमड़ने और उनमें क्रीड़ा करने का दोहद उत्पन्न हुआ। उसने सोचा-वे माता-पिता धन्य हैं, जो मेघ ऋतु में, बरसती हुई वर्षा में, यत्र-तत्र घूमकर आनंदित होते हैं। क्या ही अच्छा होता, यदि मैं भी हाथी पर बैठकर झीनी-झीनी वर्षा में जंगल की सैर कर अपना दोहद पूरा करती?' रानी ने इस दोहद की चर्चा राजा श्रेणिक से की। उस समय वर्षा ऋतु नहीं थी। मेघ के बरसने की बात अत्यंत दुरूह थी। राजा चिंतित हो उठा। उसने अपने महामात्य अभयकुमार को सारी बात कही। महामात्य राजा-रानी को आश्वस्त कर दोहदपूर्ति की योजना बनाने लगा। अभयकुमार ने देवता की आराधना करने के लिए एक अनुष्ठान प्रारंभ किया। तेले की तपस्या कर, वह मंत्र विशेष की आराधना में लग गया। तीन दिन परे हए। देवता ने प्रत्यक्ष होकर आराधना का प्रयोजन जानना चाहा। अभयकुमार ने धारिणी के मन में उत्पन्न अकालमेघवर्षा में भ्रमण की बात कह सुनाई। देवता ने कहा-'अभय! तुम विश्वस्त रहो। मैं दोहदपूर्ति कर दूंगा। कुछ समय बीता। एक दिन अचानक आकाश में मेघ उमड़ आए। सारा आकाश मेघाच्छन्न हो गया। बिजलियां चमकने लगीं। मेघ का भयंकर गरिव होने लगा। वर्षा होने लगी। मेघ ऋतु का आभास होने लगा। रानी धारिणी अपने परिवारजनों से परिवृत होकर, हाथी पर आरूढ़ हो वन-क्रीड़ा करने निकली। अपनी इच्छा के अनुसार क्रीड़ा सम्पन्न कर वह महलों में लौट आयी। उसका दोहद पूरा हो गया। नौ मास और नौ दिन बीते। रानी ने एक पुत्र रत्न का प्रसव किया। गर्भकाल में मेघ का दोहद उत्पन्न होने के कारण सद्यःजात शिशु का नाम मेघकुमार रखा गया। वैभवपूर्ण लालन-पालन से बढ़ते हुए शिशु मेघकुमार ने आठ वर्ष पूरे कर नौवें वर्ष में प्रवेश किया। माता-पिता ने उसको सर्वकलानिपुण बनाने के उद्देश्य से कलाचार्य के पास शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा। वह धीरे-धीरे बहत्तर कलाओं में पारंगत हो गया। मेघकुमार ने यौवन में प्रवेश किया। आठ सुंदर राजकन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण हुआ। एक बार भगवान महावीर राजगृह नगर में आए। मेघकुमार गवाक्ष में बैठा-बैठा नगर की शोभा देख रहा था। उसने देखा-नगर के हजारों नर-नारी एक ही दिशा की ओर जा रहे हैं। उसके मन में जिज्ञासा हुई। उसने अपनेPage Navigation
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