Book Title: Aagam Manjusha 39 Chheyasuttam Mool 06 Mahaanisiham
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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जाणं सेवामि मेहुणं । जं सुविणेवि न काय, तं मे अज्ज विचितियं ॥ ८ ॥ तहा य एत्य जम्मंमि, पुरिसो ताव मणेणवि। णिच्छिओ एत्तियं कालं, सुविणतेवि कहिंचिवि ॥ ९ ॥ ता हा हा हा दुरायारा, पावसीला अहन्निया । अट्टमट्टाई चिंतंती, तित्थयरमासाइमो ॥ २३० ॥ तित्थयरेणावि अच्चतं कट्ठे कडयढं वयं । अइदुद्धरं समादिहं उग्गं घोरं सुदुद्धरं ॥ १ ॥ ता तिविण को सको, एवं अणुपालेऊणं ? वायाकम्मसमायरणेवि, रक्खं णो तइयं मणं ॥ २ ॥ अहवा चिंतिजह दुक्खं, कीरइ पुण सुहेण य ता जो मणसावि कुसीलो, स कुसीलो सबकजेसु ॥ ३ ॥ ता जं एत्य इमं खलियं, सहसा तुडिवसेण मे आगयं तस्स पच्छित्तं, आलोइत्ता लहुं चरं ॥ ४ ॥ सईणं सीलवंतीणं, मज्झे पढमा महाऽऽरिया। धुरंमि दीयए रहा, एवं सग्गेवि घूसई ॥ ५ ॥ तहा य पायधूली मे, सोवी वंदए जणो। जहा किल सुज्झिजएमिमीए, इति पसिदा अहं जगे ॥ ६ ॥ ता जइ आलोयणं देमि, ता एवं पयडीभवे । मम भायरो पिया माया, जाणित्ता हुँति दुक्खिए ॥ ७ ॥ अहवा कवि पमाएणं, जं मे मणसा विचितियं तमालोइयं नच्चा, मज्झ वग्गस्स को दुहे ? ॥ ८ ॥ जावेयं चितिउं गच्छे, तावुतीएँ कंटगं । फुडियं ढसत्ति पाययले, ता जिसत्ता पडुड़िया ॥ ९ ॥ चिंते अहो एत्य जम्मंमि, मज्झ पायंमि कंटगं ण कयाइ लुत्तं ता किं, संपयं एत्य होहिई ? ॥ २४० ॥ अहवा मुणियं तु परमत्थं, जाणगे (मए) अणुमती कया। संघहंतीए चिडुलीए, सीलं तेण विराहियं ॥१॥ मूयंधकारबहिरंपि, कुद्धं सिडिविडियं विडं जाव सीलं न खंडेड, ता देवेहिं पुवई ॥२॥ कंटगं चैव पाए मे, खुत्तमागासगामियं । एएणं जं महं चुका, तं मे लाभं महंतियं ॥ ३ ॥ सत्तवि साहाउ पायाले, इत्थी जा मणसावि य सीलं खंडेई सा णेइ, कहं जणणीए मे इमं ? ॥ ४ ॥ ता जंण निवडई वजं, पंसुविट्ठी ममोवरिं। सयसकरंण कुट्टइ वा, हिययं तं महच्छेरगं ॥ ५॥ णवरं जइ मेयमालोयं, ता लोगा एत्थ चिंतिही। जहाऽमुगस्स धूयाए, एवं मणसा अज्झसियं ॥ ६ ॥ तं नं तहवि पओगेणं, परववएसेणालोइमो जहा जइ कोइ एयमज्झवसे पच्छित्तं तस्स होइ किं ? ॥ ७ ॥ तं चिय सोऊण काहामि, तवेणं तत्थ कारणं । जं पुण भयवयाऽऽहं घोरमचंतनिठुरं ॥ ८ ॥ तं स सीलचारितं, तारिसं जाव नो कयं तिविहंतिविहेण णीसह ताव पावे ण खीयाए ॥ ९ ॥ अह सा परववएसेणं, आलोएत्ता तवं चरे। पायच्छित्तनिमित्तेण, पन्नासं संवच्छरे ॥ २५० ॥ छट्ठट्ठमदसमदुवालसेहिं, लयाहिं णेइ दस वरिसे। अकयमकारियसंकप्पिएहिं परिभूय (भुज) भिक्खलदेहिं ॥१॥ चणगेहिं दुन्निवि भुजिएहिं सोलस मासखमणेहिं। वीसं आयामायंबिलेहिं, आवस्सगं अछड्डेंती ||२|| चरई य अदीणमणसा, अह सा पच्छित्तनिमित्तं । ताहे य गोयमा ! चिंते, जं पच्छित्ते कयं तवं ॥ ३ ॥ ता किं तमेव ण क (ग) यं मे, जं मणसा अज्झवसियं तथा ? इयरहेवि उपच्छित्तं इयरहेव उ मे कयं ॥४॥ ता किं तत्र समायरियं चिंतेंती निहणं गया। उम्मगं कट्टं तवं घोरं, दुकरंपि चरितु सा ॥ ५ ॥ सच्छंद पायच्छित्तेणं, सकलुसपरिणामदोसओ कुत्थियकम्मा समुप्पन्ना, बेसाए परिचेडिया ॥ ६ ॥ खंडोडा णाम चडुगारी, मज्झखडड्डगवाहिया विणीया सहबेसाणं, चेरीए यचउग्गुणं ॥ ७ ॥ लावन्नकंतिकलियावि, बोडा जाया तहावि सा । अन्नया थेरी चिंतेइ, मज्जनं बोडाए जारिसं ॥ ८ ॥ लावन्नं कंती रूवं, नत्यि भुवणेवि तारिसं । ता विरंगामि एईए, कन्ने णकं सहोइयं ॥ ९ ॥ एसा उ ण जाव विउप्प (जु) जे, मम धूयं कोवि णेच्छिही। अह्वा हा हा ण जुत्तमिणं, घूया तुलसावि मे णवरं ॥ २६० ॥ सुविणीया एसावि, उप्पन्नत्य गच्छिही। ता तह करेमि जह एसा, देसंतरं गयावि य ॥ १ ॥ ण लभेजा कत्थई धामं, आगच्छद पडिल्लिया देदेमि से वसीकरणं, गुज्झदेसं तु सीडिमो ॥ २ ॥ निगडाई च से देमि, भमडउ तेहिं नियंतिया एवं सा जुन्नवेसा जा, मणसा परितप्पिरं सुवे ॥३॥ ता खंडोद्वावि सिमिणंमि, गुज्झं सीडिजंतगं पिच्छइ नियडे य दिजंते, कन्ने नासं च वहियं ॥ ४ ॥ सा सिमिण वियारेडं, गट्ठा जह कोइ ण याण कहकहवि परिभ्रमंती सा, गामपुरनगरपट्टणे ॥ ५ ॥ छम्मासेणं तु संपत्ता, सखंडं नाम खेडगं तत्थ वेसमणसरिसविड्वरं - डापुत्तस्स सा जुया ॥ ६ ॥ परिणीया महिला ताहे. मच्छरेण पजच्छे (ले) दढं । रोसेण फुरफुरंती सा, जा दियहे केइ चिट्ठह ॥ ७ ॥ निसाए निम्भरं सइयं, खंडोडीं ताब पिच्छाई। तं वदतुं धाइया चुछि, दित्तं घेत्तुं समागया ॥ ८॥ तं पक्खिविऊणं गुज्यंते, फालिया जाव हियययं जाव दुक्खसरकंता, चलचुलेवींड केरइ सा ॥९॥ ता सा पुणो विचिते, जावजीवं ण उइडए । ताव देमी से दाहाई, जेण मे भवसएमुवि ॥ २७० ॥ न तरई पिययमं काउं, इणमो पडिसंमरंति या ताहे गोयम! आणेउं चक्कियसालाउ अयमयं ॥ १ ॥ तावितु फुलिंगमेतं, जोणीए पक्वित्तं फुसं । एवं दुक्खभरकंता, तत्य मरिऊण गोयमा ! ॥ २ ॥ उववन्ना चकवहिस्स, महिलारयणत्तेण सा । इओ य रंडपुत्तस्स, महिला तं कलेवरं ॥ ३ ॥ जीवु - ज्झिपि रोसेण, छेत्तुं सुसुहुमयं सा साणकागमादीणं, जाव घत्ते दिसोदिसिं ॥४॥ ताव रंडापुत्तोवि, बाहिरभूमीउ आगओ। सो य दोसगुणे गाउं, बहुं मणसा वियप्पिडं गंतूण साहुपामूलं, पवजा काउ निबुडो ॥ ५ ॥ अह सो लक्खणदेवीए जीवो खंडोडीयत्तणा । इत्थीरयणं भवित्ताणं, गोयमा ! छट्टियं गओ ॥ ६ ॥ तनेरइयं महादुक्ख, अघोरं दारुणं तहिं । तिकोणे निरयावासे, सुचिरं दुखेण बेइउं ॥ ७ ॥ इहागओ समुप्पन्नो तिरियजोणीए गोयमा ! साणत्तेणाह मयकाले, विलग्गो मेहुणे तहिं ॥ ८ ॥ माहिसिएणं कओ पाओ, विशे ११५४ महानिशीथच्छेदमूत्रं, अन्यय-ई
मुनि दीपरत्नसागर
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