Book Title: Aagam Manjusha 39 Chheyasuttam Mool 06 Mahaanisiham
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 45
________________ (उल्लीरिजंतो) तट्ठो णासंतो धावतो, पलायंतो दिसोदिसिं ॥१॥ उच्छल पच्छलं, हीलणं बहुविहं तहिं । सहतो थाममलहंतो, खणनिमिसंपि कत्थई ॥२॥ कहकहवि दुक्खसंतत्तो, सुबहुकालेहिं तं जलं। अवगाहंतो गओ उवरिं, पउमिणीसंडसंघणं ॥३॥ छिड्डे मया किलेसेणं, ल९ ता तत्व पेच्छई। गहनक्खत्तपरियरियं, कोमुइचंदं खहेऽमले ॥४॥ दिपंतकु. वलयकल्हारं, कुमुयसयवत्तवणप्फई। कुरुलियंते हंसकारंडे, चकवाए सुणेइ य॥५॥ जमदिटुं सत्तमुवि साहासु (अब्भुअं चंदमंडलं)। तं ददर्छ विम्हिओ खणं, चिंतइ एयं जहा होही ॥६॥ एयं तं सम्गं ताऽहं. (बंधवार्ण पमोययं) बंधवाणं पयंसिमो।बहुकालेणं गवेसेउ, ते घेत्तूण समागओ[आघणघोरंधयाररयणीए, भद्दवकिण्हच उद्दसीहि तु। ण पेच्छे जाव तं रिदि, बहुकाल निहालिउं॥८॥ पुण कच्छभो नु जह उ, तहावितं रिद्धिं न पेच्छइ । एवं चउगईभवगहणे, दुलभे माणुसत्तणे ॥९॥ अहिंसालक्खणं धर्म, लहिऊणं जो पमायई । सो पुण बहुभवलक्खेसु, दुक्खेहि माणुसत्तर्ण, लईपिन लम्भई धम्म, त रिदि कच्छभो जहा ॥३९०॥ दियहाई दो व तिचिव. अदाणं होड जंतलम्गेण । समायरेण तस्सवि. संबलयं लेह पवि. संतो॥१॥जो पुण दीहपवासो चुलसीईजोणिलक्खनियमेणं । तस्स तवसीलमइयं संबलयं किं न चितेह ? ॥२॥जह २ पहरे दियहे मासे संवच्छरे य वोलंति । तह२ गोयम ! जाणम् दुक्खे आसन्नयं मरणं ॥३॥ जस्स न नज्जइ कालं न य वेला नेय दियहपरिमाणं । नाएवि नस्थि कोइवि जगंमि अजरामरो एत्थं ॥ ४ ॥ पावो पमायवसओ जीवो संसारकजमुजुत्तो। दुक्खेहि न निविन्नो सुक्खेहिं न गोयमा ! तिप्पे ॥५॥ जीवेण जाणि उ विसजियाणि जाईसएसु देहाणि । थेवेहिं तओ सयलंपि तिहुयर्ण होज पडिहत्थं ॥ ६॥ नहदंतमुभमुहक्खिकेस जीवेण विप्पमुकेसुवि। तेसुवि हविज कुलसेलमेरुगिरिसन्निभे कूडे ॥ ७॥ हिमवंतमलयमंदरदीवोदहियरणिसरिसरासीओ। अहिययरो आहारो जीवेणाहारिओ अर्णत. हुनो॥८॥ गुरुदुक्खभरूकंतस्स अंसुनिचाएण जं जलं गलियं । तं अगडतलायनईसमुहमाईसु णवि होजा॥९॥ आवीयं थणीरं सागरसलिलाउ बहुयर होजा। संसारंमि अणते अबलाजोणीएं एकाए ॥४००॥ सत्ताहपिवनसुकहियसाणजोणीए मज्झदेसंमि।किमियत्तण केवलएण जाणि मुकाणि देहाणि ॥१॥ तेसिं सत्तमपुढवाए सिदिखेत चोहसरजु लोग व अणंतभागेणवि भरेजा ॥२॥ पत्ते य कामभोगे कालमणतं इहं सउवभोगे। अप्पुवं चिय मन्नइ जीवो तहवि य विसयसोक्खं ॥३॥जह कच्छुडो कच्छु कंडुयमाणो मा दुहं मुणइ सोक्खं । मोहाउरा मणुस्सा तह कामदुहं सुहं विति॥४॥ जाणंति अणुभवति य जम्मजरामरणसंभवे दुक्खे । न य विसएसु विरजति (गोयमा!) दुग्गइगमणपस्थिए जीये | ॥५॥ सवगहाणं पभवो महागहो सबदोसपायट्ठी। कामगहो दुरप्पा जेणऽभिभूयं जगं स (तस्स वसं जे गया पाणी)॥६॥ जाणंति जहा भोगिढिसंपया सामेव धम्मफलं। तहविं | दढमूढहियए पार्य काऊण दोग्गई जंति ॥ ७॥ वचइ खणेण जीवो पित्तानलधाउसिंभखोभेहिं। उज्जमह मा विसीयह तरतमजोगो इमो दुलहो ॥८॥ पंचिंदियत्तणं माणुसत्तणं आच. रिए जणे सुकुलं । साहुसमागमसुणणासहहणाऽरोगपञ्चजा ॥९॥ मूलअहि विसविसूइयपाणियसत्थग्गिसंभमेहिं च। देहंतरसंकमणं करेइ जीवो मुहुत्तेण ॥ ४१०॥ जावाउ सावसेस जाव &थेवोवि अस्थि ववसाओ। ताव करेज अप्पहियं मा तप्पिहहा पुणो पच्छा ॥१॥ सुरवणुविजुखणदिट्ठनट्ठसंशाणुरागसिमिणसमं । देहं इति तु वियला मम्मयभंडं व जलभरियं ॥२॥ इय जाव ण चुकसि एरिसस्स खणभंगुरस्स देहस्स। उम्ग कटुं घोरं चरसु तवं नत्थि परिवाडी ॥३॥ गोयमोति ! 'वाससहस्संपि जई काऊणं संजमं सुविउलंपि। अंते किलिनुभावो | नवि सुज्झइ कंडरीउन ॥४॥ अप्पेणवि कालेणं केइ जहागहियसीलसामना । साहति निययकज पोंडरियमहारिसिव जहा ॥५॥ण अ संसारंमि मुहं जाइजरामरणदुक्खगहियस्स। जीवस्स अस्थि जम्हा तम्हा मोक्खो उवाएओ॥४१६॥ सवपयारेहिं सवहा सवभावभावंतरेहिं ण गोयमोत्ति बेमि॥ महानिसीहसुयक्वंधस्स छट्ठमझयणं गीयत्वववहारं नाम समनं -६॥'भयवं ! ता एयनाएणं, भणियं आसि मे तुम (जहा)। परिवाडीए (तचं) किन अक्खसि, पायच्छित्तं तत्थ मझवी ॥१॥ वह गोयम ! पचिडतं, जब तुम तमालंबसि। नवरं धम्मवियारो ते, कओ सुवियारिओ फुडो ॥२॥ण होइ तस्स पच्छितं, पुणरवि पुच्छेन गोयमा !। संदेहं जाव देहत्वं, मिच्छ ताव निच्छयं ॥३॥ मिच्छत्तेणवि अभिभूए, तित्थयरस्स विभासियं । वयणं लंपितु विवरीयं, वाएत्ताणं पविसंति॥४॥ (घोरतमतिमिरचहलंधयारं पायालं) णवरं सुवियारिउँ काउं, तित्थयरा सयमेव य। भणति तं जहा चेव, गोयमा! समणुहए ॥५॥ अत्येगे गोयमा ! पाणी, जे पजिय जहा तहा। अविहीए तह चरे धम्मं, जह संसारा ण मुचए ॥६॥ से भयवं ! कयरे णं से विहीसीलोगो?, गोयमा ! इमे णं से विहीसिलोगो, तंजहा चिइवंदर्ण पडिकमणं, जीवाइतत्तसम्भावं। समिइंदियदमगुत्ती, कसायनिग्गहणमुवओगं ॥७॥ नाऊण सो बीसत्थो सामायारि कियाकलावं च। आलोइय नी. टासाटो आगम्भा परमसंविग्गो ॥८॥ जम्मजरमरणभीओ चउगइसंसारकम्मदहणट्ठा। पइदियह हियएणं एय अणवस्य सायंतो ॥९॥ जरमरणमयणपउर रागांकलसाइव कम्मढकसायागाहगहिरभवजलहिममंमि ॥१०॥ भमिहामि भट्ठसम्मत्तनाणचारित्तलद्धवरपोओ। कालं अणोरपारं अंतं दुक्खाणमलभंतो॥१॥ता कइया सो दियहो जत्थाहं सनु. ११५७ महानिशीपच्छेदमूत्रं, Hariraul-29 मुनि दीपरनसागर PAK स,

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