Book Title: Aagam Manjusha 39 Chheyasuttam Mool 06 Mahaanisiham
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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जगुत्तमं । गोयमा ! तणमिव परिचिचा, जं इंदाणवि दुइहं ॥ ९ ॥ नीसंगा उग्गं कडं घोरं अइदुकरं तवं भुयणस्सवि उक्कद्धं समुप्पायं चरंति ते ॥ ३३० ॥ जे पुण खरहरफुट्टसिरे, एगजम्मसुहेसिणो। तेसि दुलियाणंपि, सुदवि नो हियइच्छियं ॥ १ ॥ गोयम ! महुबिंदुस्सेव, जावइयं तावइयं सुहं मरणंतेवी न संपजे, कयरं दुहलियन्त्तर्ण १ ॥२॥ अहवा गोयम पञ्चकखं, पेच्छय जारिसयं नरा दुइलियं सुहमणुर्हति जं नियुणिज्जा न कोइवी ॥ ३ ॥ केई कारेंति मासलि हालियगोवालत्तणं दासत्तं तह पेसत्तं, गोडतं सिप्पे बहु ॥ ४ ॥ ओलम्गं किसिवाणिज्जं पाणञ्चायकिलेसियं दालिदऽविह्वत्तणं केई, कम्मं काउण घराघरिं ॥ ५॥ अत्ताणं विगोवेडं, ढिपिढिणिते अ हिंडिर्ड नम्गुग्घाडकिलेसेणं, जो समजति परिह (हिर) णं ॥६॥ जरजुन्नसयछिदं लक्षं कहकहवि ओढणं जा अज्जा कडिं करिमो फट्ट ता तमवि परिह (पहि) रणं ॥ ७॥ तहावि गोयमा ! बुज्झ, फुडवियडपरिफुडं । एतेसिं चैव मज्झाउ, अनंतरं भणियाण करसई ॥ ८ ॥ लोयं लोयाचारं च चिचा सयणकियं तहा। भोगोवभोगं दाणं च भोत्तूर्ण कदसणासणं ॥ ९ ॥ धाविडं गुप्पिडं सुइरं खिजिऊण अक्षिसं कागणि कागणीकाओ, अर्द्ध पाय विसोवगं ॥ ३४० ॥ कत्थइ कहिंचि कालेणं, लक्खं कोडिं च मेलिडं जा एगिच्छा मई पुन्ना, बीया णो संपजए ॥ १ ॥ एरिसयं दुहलियत्तं, सुकुमालत्तं च गोयमा !। धम्मारंभंमि संपडइ, कम्मारंभे न संपडे ॥२॥ जेणं जस्स मुहे कवलं, गंडी अन्नेहिं धजए। भूमीए न ह (ठ) वए पायं, इत्थीलक्खेसु कीडए ॥ ३॥ तस्सावि णं भवे इच्छा, अन्नं सोऊण सारियं समुद्धहामि तं देसं, अह सो आणं पडिच्छउ ॥ ४ ॥ सामभेओवपयाणाई, अह सो सहसा परंजिडं तस्स साहसतुलणट्ठा, गूढचरिएण बच्चइ ॥ ५ ॥ एमागी कप्पडाबीओ, दुग्गारनं गिरी सरी। लंघित्ता बहुकालेणं, दुक्खदुक्खं पत्तो तहिं ॥ ६ ॥ दुक्खं खुक्खामकंठो सो जा भमडे घराघरिं जायंतो च्छिदमम्माई, तत्थ जइ कवि ण णजए ॥ ७॥ ता जीवंतो ण चुकेज्जा, अह पुन्नेहिं समुदरे। तओ णं परिवत्तिय देहं तारिखो स गिहे विसे ॥ ८ ॥ को तं सि परियणो सन्ने?, ताहे सो असणाइसु। नियचरियं पायडेऊण, जुज्झसज्जो भवेउण ॥ ९ ॥ सङ्घबल (जाण) थामेणं, खंडाखंडेण जुज्झिउं अह तं नरिदं निजिणिइ अहवा तेण पराजिए ॥ ३५० ॥ बहुपहारगलंतरुहिरंगो, गयतुरयाउन (ह) अहोमुहो। णिवडइ रणभूमीए, गोयमा ! सो जया तया ॥१॥ तं तस्स दुहलियत्तं सुकुमालत्तं कहिं गए? जो केवलं सहत्थेणं, अहोभागं च धोविडं ॥२॥ निच्छंतो पायं ठविडं, भूमीए न कयाइवि । एरिसोऽबी स दुइलिओ, एयावस्थमुवागओ ॥ ३ ॥ जइ भन्ने धम्मचिट्ठे ता पडिभणइ न सक्किमो तो गोयमा! अहन्नाणं, पावकम्माण पाणिणं ॥ ४ ॥ धम्मट्ठाणंमि मई, न कयावि भविस्सए । एएसि इमो धम्मो, इकजंमीण भासए ॥ ५ ॥ जहा खंतपियंताणं, सर्व अम्हाण होहिइ ता जो जमिच्छेतं तस्स, जइ अणुकूलं पवेयए ॥ ६ ॥ ता वयनियमविणावि, मोक्खं इच्छति पाणिण एए एते ण रुसंति, एरिसं चिय कहे यज्ञं ॥ ७॥ णवरं ण मोक्खो एयाणं, मुसावायं व आवई अनंच रागं दोसं च मोहं च, भयच्छंदानुवत्तिणं ॥ ८ ॥ तित्थंकराणं णो भूयं, णो भवेजा उ गोयमा !। मुसावायं ण भासते, गोयमा ! तित्थंकरे ॥ ९ ॥ जेण तु केवलनाणेण, तेसिं पञ्चक्रखगं जगं भूयं भयं भविस्सं च पुन्नं पावं तहेब य ॥ ३६० ॥ जंकिंचि तिसुवि लोएस तं स तेसि पाय पायालं अवि उदमुहं सग्गं एजा अहोमुहं ॥ १ ॥ णूणं तित्थयरम्हभणियं वयणं होज न अन्नहा नाणं दंसणचारितं तवं पोरं सुदुकरं ॥ २ ॥ सोग्गइ मग्गो फुडो एस. परूवंती जहद्विअं अन्नहा न तित्थयरा, वाया मणसा व कम्मुणा ॥ ३॥ भणति जइवि भुवणस्स, पलयं वइ तक्खणे जं हियं सवजगजीवपाणभूयाण केवलं तं अणुकंपाए तित्थयरा, धम्मं भासति अवितहूं ॥ ४ ॥ जेणं तु समणुचिमेणं, दोहम्मदुक्खदारिदरोगसोगकुगइभयं ण भविज्जा उ बिइएणं, संतावुचेवगे नहा ॥ ५॥ भयवं ! णो एरिसं भणिमो जह छंद अणुवत्तय णवरमेयं तु पुच्छामो, जो जंसके स तं करे ? ॥ ६ ॥ गोयमा ! पेरिसं जुत्तं, खणं मणसा विचितिडं अह जइ एवं भवे णायं तावं धारे हुअं बलं ॥ ७ ॥ घयऊरे खंडरब्याए, एको सकेइ खाइयं अन्नो समंसमज्जाई, अक्षो रमिऊण एत्थियं ॥ ८ ॥ असो एपि नो सके, अन्नो जोएइ पक्खयं अन्नो चडवडमुहे एस (अन्नो एपि) भणिऊण ण सकुणोई ॥ ९ ॥ चोरियं जारियं अन्नो, अन्नो किचि ण सक्कुणोई भोतुं मोतुं सपत्थरिए, सके चिट्ठेत्तु मंचगे ॥ ३७० ॥ मिच्छामि दुकमियं हंत, एरिसं नो भणामऽहं । गोयमा ! अन्नंपि जं भणसि, तंपि तुज्झ कहेमऽहं ॥ १ ॥ एत्य जम्मे नरो कोई, कसिणुग्गं संजमं तवं जइ णो सकइ काउं जे, तहवि सोगइपिवासिओ ॥ २ ॥ नियमं पक्खिखी. रस्स, एगं बालउप्पाडणं । स्वहरणस्सेगियं दसियं, एत्तियंतु प (रि) धारियं ॥ ३ ॥ (सकुणोइ) एयंपि न जावजीवं, पालेडं ता इमस्सवी गोयमा तुम्भ बुदीए, सिद्धिं खेलस्सऽओ परं ॥ ४ ॥ मंडवियाए भवेयवं, दुकरकारि भवेत्तु य णवरं एयारिसं भवियं किम गोयमा ! पयं ? ॥ ५॥ पुणो तं एवं पुच्छंमी, तित्थकरे चउन्नाणी, ससुरासुरजगपूइए। निच्छिसिज्झि वि, तंमि जम्मे न अन्नए, जम्मे ॥६॥ ( तहावि) अणिगृहित्ता बलं विरियं, पुरिसयारपरकर्म उगं कई तवं घोरं, दुकरं अणुचरंति ते ॥ ७॥ ता अन्नेमुवि सत्तेसुं चउगइसंसार दुक्खभीएस (जं जहेब तित्ययरा भणति) तहेव समणुद्वेयां, गोयम ! सवं जहट्टियं ॥ ८ ॥ जं पुण गोयम ते भणियं, परिवाडीए कीरइ अथके इंडिदुद्वेणं, कजं तं कस्य लब्भए ? ॥ ९ ॥ तत्थवि गोयम ! दितं महासमुदंमि कच्छभो। अन्नेसि मगरमादीणं, संघट्टा भीउवट्टओ ॥ ३८० ॥ बुडनिब्बुड करेमाणो (सबलीसलोभली ) पेलापेलीए कत्थई । (२८९) ११५६ महानिशीथच्छेदसूत्रं अक्षयमुनि दीपरत्नसागर
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