Book Title: Aagam 28 V TANDUL VAICHAARIK Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(२८-व)
“तन्दुलवैचारिकं” - प्रकीर्णकसूत्र-५ (मूलं+अवचूर्णि:)
------------- मूलं [६]/गाथा ||१७...|| -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-२८-व), प्रकीर्णकसूत्र-[9] “तंदुलवैचारिक मूलं एवं विजयविमल गणि कृता अवचूर्णि:
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पत
||१७..||
जगत्राता जगद्भावविज्ञाता वीर आह-हे गणधर ! गौतम ! त्रीणि मातुरङ्गानि प्रज्ञप्तानि मया अन्यैश्च जगदीश्वरैः,
तद्यथा-मांस-पललं १ शोणितं-रुधिरं २ मत्थुलुंगेति-मस्तकभेजकं, अन्ये त्वाः-मेदःफिफ्फिसादिः मस्तुलुंगमिति ३॥ ताकद णं भंते !' कति हे भदन्त! पैतृकाङ्गानि शुक्रविकारबहुलानीत्यर्थेः प्रज्ञप्तानि ?, हे गौतम! त्रीणि पैतृकाङ्गानि 8 ताप्रज्ञप्तानि, तद्यथा-अस्थि-ह९१ अस्थिमिञ्जा-अस्थिमध्यावयवः २ केशश्मश्रुरोमनखाः३, तत्र केशाः-शिरोजाः श्मश्रूणि
कूर्चकेशाः रोमाणि-कक्षादिकेशाः नखा:-करजा इति, केशादिकं बहुसमानरूपत्वादेकमेव, उभयव्यतिरिक्तानि तु
शुक्रशोणितयोः समविकाररूपत्वात् मातापित्रोः साधारणानीति ॥ गर्भस्थोऽपि किं कश्चिद् जीवो नरकं देवलोकं वा गच्छ-| टीतीति गौतमो वीरं प्रश्नयतिका जीवे णं भंते ! गम्भगए समाणे नेरइएसु उववजिजा?, गोयमा! अत्धेगइए उववजिजा अत्धेगइए णो |उववजिज्जा, से केण्डेणं भंते ! एवं बुच्चइ-जीवे णं गन्भगए समाणे नेरइएसु अत्धेगहए उववजिज्जा अत्थेगइए |नो उववजिजा?, गोयमा! जे णं जीवे गब्भगए समाणे सन्नी पंचिंदिए सचाहिं पजत्तीहिं पजत्तए वीरियलकाहीए विभंगनाणलद्धीए विउवियलद्वीए विउवियलद्धीपत्ते पराणीयं आगयं सुचा निसम्म पएसे निच्छुहइ
निच्छुहित्ता विउवियसमुग्घाएणं समोहणइ समोहणित्ता चाउरंगिणि सिन्नं सन्नाहेइ सन्नाहित्ता पराणीएणं दसद्धिं संगाम संगामेइ, से णं जीवे अस्थकामए १ रजकामए २ भोगकामए ३ कामकामए ४ अत्धकंखिए
१ रज्जकंखिए २ भोगकंखिए ३ कामकंखिए ४ अत्थपिवासिए १ भोग० २ रज.३ काम०४, तचित्ते १
दीप अनुक्रम
[२३]
| गर्भगत जीवस्य नरकस्थाने उत्पत्ति:
~ 24~

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