Book Title: Aagam 28 V TANDUL VAICHAARIK Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 30
________________ आगम (२८-व) “तन्दुलवैचारिकं” - प्रकीर्णकसूत्र-५ (मूलं+अवचूर्णि:) ---- ---- मूलं [९-११]/गाथा ||१८-३०|| -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.....आगमसूत्र-२८-८], प्रकीर्णकसूत्र-[9] “तंदुलवैचारिक मूलं एवं विजयविमल गणि कृता अवचूर्णि: प्रत सूत्रांक [९-११]] पएसंमि॥४॥(२१) आउसो! तओ नवमे मासे तीए वा पटुप्पन्ने वा अणागए वा चउण्हं माया अण्णयरं पयायइ, तंजहा-इत्थिं वा इत्थिरूवेणं १ पुरिसं वा पुरिसरूवेणं २ नपुंसगं वा नपुंसगरूवेणं ३ बिंब वा बिंवरूवेणं ४ (सू०१०) अप्पं सुकं बहुं उउयं, इत्थी तत्थ जायइ १।अप्पं उयं बहुं सुकं, पुरिसो तत्थ जायइ २॥१॥ (२२) दुण्हपि रत्तसुक्काणं, तुल्लभावे नपुंसओ३ । इथिउयसमाओगे, बिंब तत्थ जायइ ४॥२।। (२३) अह | लणं पसवणकालसमयंसिसीसेण वा पाएहि वा आगच्छइ समागच्छइ तिरियमागच्छह विणिघायमावजइ (सू०११) का कोई पुण पावकारी बारस संवच्छराई उक्कोसं । अच्छइ उ गम्भवासे असुइप्पभवे असुइयंमि ॥१॥ (२४) जायमाणस्स जं दुक्खं, मरमाणस्स वा पुणो। तेण दुखेण संमूढो, जाइं सरह नऽप्पणो ॥२॥ (२५) वीसरसरं ४ रसंतो जो सो जोणीमुहाओ निप्फिडइ । माऊए अप्पणोऽविय वेयणमउलं जणेमाणो ॥ ३ ॥ (२६) गम्भघर| यमि जीवो कुंभीपागंमि नरयसंकासे । वुत्थो अमिज्झमज्झे असुइप्पभवे असुइयंमि ॥४॥ (२७) |पित्तस्स य सिंभस्स य सुक्कस्स य सोणियस्स चिय मज्झे । मुत्सस्स पुरीसस्स य जायइ जह वञ्चकिमिउच ॥५॥ (२८) तं दाणि सोयकरणं केरिसर्य होइ तस्स जीवस्स। सुक्करुहिरागराओ जस्सुप्पत्ती सरीरस्स ॥६॥ (२९) एयारिसे सरीरे कलमलभरिए अमिज्झसंभूए । निययं विगणिजंतं सोयमयं केरिसं तस्स? ॥७॥ (३०) 'जीवे णं भंते! ग.' जीवो हे भदन्त! गर्भगतः सन् 'उत्ताणए वेति उत्तानको वा सुप्तोन्मुखो वेत्यर्थः 'पासिल्लिए । -३०|| ACCOUNCESCRECCC दीप अनुक्रम [२५-४२]] Encatory ~ 29~

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