Book Title: Aagam 15 PRAGNAPANA Moolam evam Vrutti Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Deepratnasagar View full book textPage 6
________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) -------- उद्देशक: [-1, ----------------- दारं -1, ---------------- मूलं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [१५], उपांग सूत्र - [४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीत वृत्ति: प्रत ॥ अहम् ॥ श्रीमदार्यश्यामाचार्यसंकलितम् श्रीमन्मलयगिर्याचार्यविरचितवृत्तिपरिकरितं श्रीप्रज्ञापनासूत्रम् सूत्राक दीप अनुक्रम जयति नमदमरमुकुटप्रतिविम्बच्छाविहितबहुरूपः । उद्धर्तमिव समस्तं विथं भवपङ्कतो वीरः ॥ १॥ जिनवचनामृतजलधिं वन्दे यद्विन्दुमात्रमादाय । अभवन्ननं सत्त्वा जन्मजराव्याधिपरिहीणाः॥२॥ प्रणमत गुरुपदपङ्कजमधरीकृतकामधेनुकल्पलतम् । यदुपास्तिवशान्निरुपममश्नुवते ब्रह्म तनुभाजः ॥ ३॥ जडमतिरपि गुरुचरणोपास्तिसमुद्भूतविपुलमतिविभवः । समयानुसारतोऽहं विदधे प्रज्ञापनाविवृतिम् ॥४॥ अथ प्रज्ञापनेति कः शब्दार्थः१, उच्यते, प्रकर्षण-निःशेषकुतीर्थितीर्थकरासाध्येन यथावस्थितखरूपनिरूपणलक्षणेन ज्ञाप्यन्ते-शिष्यबुद्धावारोप्यन्ते जीवाजीवादयः पदार्था अनयेति प्रज्ञापना, इयं च समवायाख्यस चतुथों प्र. onal Lumiarary.org वृत्तिकारकृत् मङ्गल-गाथा:, प्रज्ञापना-शब्दस्य व्याख्या ~5~Page Navigation
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