Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

Previous | Next

Page 12
________________ आगम (०१) “आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [१], उद्देशक [१], नियुक्ति: [१-६७], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १-१२] अर्थाधि काराः प्रत वृत्यंक [१-१२] श्रीआचा- पसत्थगुणचरणाणं अहीगारो, एयाणि णवविडचंभवेराणि निजरत्थं पढिअंति, जहत्य भणियं तह आयरिजंति, तस्स पुण णवबंभचेर- रांग सूत्र सुयखंधस्स इमे अज्झयणा भवंति, तंजहा-'सत्यपरिण्णा लोगविजओ'गाहा 'अट्ठमए य विमोक्खो'गाहा (३१,३२-९) चूर्णिः एतेसि णवण्डं अज्झयणाणं इमे अत्याहिगास भवंति, संजहा-'जियसंजमोय' माहा (३३) 'णिस्संगया य छट्टे' गाहा, (३४-१०) तत्थ परिणाए जीवसम्भावोवलंभो कीरति, जीवअमावे णवि भचरणं नदि तप्पयोजणं अतो अत्तोवलंभो । पदमं कायबो, एवं सो अप्पाणं उवलमित्ता उत्तरकाले सत्तरसंजमे अप्पाणं ठावेद संजमं का अप्पाणे, लोगविजए उदइओ भावो लोगो कसाया जाणियब्बा, जहा य खवेयच्या, एवं महत्वयावहियस्स बिसयकसायलोयं जिणंतस्स जइ अणुलोमपडिलोमा | | उबसग्गा उप्पोमा ते सहियब्बा ततितो अहिगारो, पंचमहब्बयअवहितमइस्स जियकसायलोयस्स मुहदुक्खं तितिक्खमाणस्स | पंचम्गितावगोमयमुक्कसेलामाइआहारजंतणतयोविसेसं दण विजातिरिद्वीओ य मा दिट्ठिमोहो भविस्सइ तेण चउत्थे | संमतं, पंचमे तहेच अहिगार उच्चारित्ता लोगं सारमसारं जाणित्ता विस्सारं छडित्ता सारगहणं कायब्वं, छड्डे उ तहेब अहिगारे । उच्चारित्ता संमत्तादिसारं गहेऊणं भावतो निस्संगो विहरेजा, सत्मे तु मोहसमुत्था परीसहोवसग्गा सहिता परिजाणियब्बा, अट्ठमे तु वियाणिचा णिजाणं कायन्वं, जं भणितं भक्तप्रत्याख्यानं, नवमे केण इमं दरिसितमाइण्णं वा ?, वीरसामिणा, एसो उ भरे पिंडत्थो वण्णिओ समासेणं । एताहे एकेक अज्झयणं वष्णहस्सामि ॥१॥ तत्थ पदम अज्झयणं सत्थपरिणा, तस्स | चत्तारि अणुओगदारे वष्णेऊणं पुवाणुबीए पदम पच्छाणुपुबीए णवम अणाणुपुबीए गवगच्छगयाए०, णामे खयोवसमिए समोKA वतरति, भावप्पमाणे लोउत्तरे आगमे विभासा, णो णयप्पमाणे, कालियमुयपरिमाणसंखाए, उस्सण्णेणं सबसुयं ससमयवनव्ययाए, दीप अनुक्रम [१-१२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [11]

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 388