Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: DeepratnasagarPage 13
________________ आगम (०१) “आचार” - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [१], उद्देशक [१], नियुक्ति: [१-६७], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १-१२] शसपरि | जयो निक्षेपाः प्रत ॥८ ॥ वृत्यंक [१-१२] दीप अनुक्रम [१-१२] श्रीआचा- अत्याहिगारो सो इमाए गाहाए अणुगंतब्बो, 'जीवो छकायपरूवणा य'गाहा-(३५-१०) जत्थ जत्थ समोयरति तत्थ तत्थ प्रसूत समोतारितं, णामणिप्फण्णो सत्थपरिणा, सत्थं परिण्णा य दो पदाई, तत्थ सत्थं निक्खेवियव्वं 'दव्वं सत्थग्गिविसं' गाहा-110 चूर्णिः (३६-१०) तत्थ सत्थं असिमादि अम्गिसत्थं एवं विमसत्थं गेहं अविलं खारो नाम क्षारो रूक्षाणि च-पीलुकरीरादी करीसण-11 | गरणिद्धमणादी दव्वसत्थं, भावसत्य कायो वाया मणो य दुप्पणिहियाई । परिणा चउचिहा, 'दच्वं जाणण पञ्चवाण' गाहा (३७-१०) दव्यपरिण्णा दुविहा-जाणणापरिण्णा पचक्वाणपरिष्णा य, तत्थ जा सा दबजाणणापरिण्णा सा दुचिहाआगमओ नोआगमओ य, आगमओ जस्स णं परिणतिपदं०णोआगमतो दुविहा-जाणगसरीर भवियसरीरा०, इदाणि पश्चक्खाणदब्बपरिणा-जो जेण रजोहरणादिदग्वेणं पञ्चक्खाइ एसा पञ्चक्खाणदब्बपरिणा, भावपरिण्णा दुविहा-जाणणा पञ्चक्वाणे य, जाणणा आगमतो णोआगमतो य, आगमतो जाणतो उवउनो, नोआगमतो इमं चेव सत्थपरिणाअज्झयणं, भावपच्चक्रवाणपरिणावि सच्चपावाणं अकरणं, जहा सर्व पाणाइवायं तिविहं तिविहेण पञ्चक्खाइ । गतो नामनिष्फण्णो निस्खेवो, | सुत्ताणुगमे सुत्तमुचारेयवं-अक्खलियं अमिलित०, तत्थ संधिता-सुत्-सुयं मे आउसं! तेण भगवया एवमक्वाय'(१-११) एयस्स अज्झयणस्स इमो उग्घातो-'अत्थं भासह अरहा सुतं गंथति गणहरा निउणा । सासणस्स हियट्ठाए ततो सुत्तं पवनइ ॥१॥ तं सुणित्तु गणहरा तमेव अत्थं सुतीकरित्ता पत्तेयं ससिस्सेहि पज्जुवासिञ्जमाणे एवं भणंति-सुयं मे आउसं ! तेणं | भगवया एवमक्खाय, मुहम्मो वा जंयुनाम-सुर्य मे आउसं ! तेण भगवया, सुणे सुतं, मे इति अहमेवासौ येन श्रुतं तदा, ण In खणविणासी, आउसो ! ति. सिस्मार्मतणं, सिस्सगुणा अधणेऽवि पमत्थदेसकुलादि परिग्गहिता भवंति, दिग्घाउयत्तं तेसुंगरूयतरं मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [12]Page Navigation
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