Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 17
________________ आगम “आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [१], उद्देशक [१], नियुक्ति: [१-६७], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १-१२] सम्यक्त्वग्रह प्रत वृत्यक [१-१२] श्रीआचा- PP. अस्थि केसिंचि सन्वगतो असध्वगतो बा, तथा कत्ता अकर्ता मुत्तो अमुत्तो वा, अत्थित्तेऽपि सामाकतंदुलमित्ते अन्नेसि अंगुट्ठ-1 रांग सूत्र | पब्वमित्तो अन्नेसि पईबसिहोबसोहियाहिडितो, एतेसिं सब्वेसि अस्थि उववादिओ य, अकिरियावादीणं णस्थि चेव, कओ उव-10 चूर्णिः वादिओ?, अण्णाणिया अप्पाणं पहुच ण विपडिवअंति, वेगइया य, अहवा इममि अत्तसम्भावोवलंसदेसए सम्मत्तगहणुदेसए वा | ॥ १२ ॥ PA अवस्सं सम्मईसणायारो वण्णेयब्बो तप्पडिवक्खं च मिच्छति, तं जइविय चउत्थे सम्मत्तझयणे वित्थरेण वणिजिहिति तहावि | | इह संखेवुद्देसेणं उल्लाविञ्जइ, सम्मईसणपरिच्छाएवि आदिपदत्थो जीवो, तहिं सिद्धे सेसपदत्थसिद्धी, तं व उपरि इच्छेच उद्देमए | भणिहिति, तंजहा 'से आतावादी लोगावादी', कहं सम्मत्तं न लब्भति ?, भण्णति, अट्ठण्डं पगडीणं पदमिल्लगाण उदए णो। सण्णा भवति, पगडीणं अम्भितरे, सणनि वा बुद्धिति वा नाणंति वा विणाणंति वा एगट्ठा, आदिरंतेण सहिता, सण्णाग्रहणेणं || N/ आभिणियोहियनाणं सूपितं भवति, एवं आभिणिचोहियनाणं अस्सनिदिसाए एगतेण णस्थि, सन्नीवि तिरीय अभिनिवेसेणं णस्थि, || 'केसिंचि अस्थि सन्ना'गाहा (६३-१६) जेसिपि अस्थि अप्पा उबवाइओ य तेसिपि एतं णो णातं भवति-के अहं आसी रहो वा तिरिओ वा इत्थी वो पूरिसो वा पुंसओ वा ? के व इओ-इमाओ माणुस्साओ चुओ पेचति परलोगे, तो एसो ताव | अयाणतो, तश्विपरीओ जाणो, सो कह जाणइ १, भण्णइ-'सहसंमृतियाए परवागरणेणं अन्नेसिवा सोचा'(४-१९) | सोभणा मति संमति सहसमुतियाएनि 'इस्य य सहसम्मइया जं एवं' गाहा (६५-२०) पढियन्ना, एसा चउनिहावि | सहसंमुइया आतपचक्खा भवति, परवागरणं णाम सन्चनाणीणं तित्थगरो परो-अणुत्तरो, वागरिज्जतीति वागरणं परस्स बागरणं परं वा यागरणं परवागरणं, परस्स वा वागरणं परोवदेसो जहा गोयमसामी तित्थगरवयणेणं इंदनागं संबोधति-भो अणेगपिंडिया! दीप अनुक्रम [१-१२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [16]

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