Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: DeepratnasagarPage 14
________________ आगम (०१) “आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [१], उद्देशक [१], नियुक्ति: [१-६७], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १-१२] प्रत वृत्यंक [१-१२] श्रीआचा--0 तेण तग्महणं, चिरजीवी अण्णेसिपि दाहिति, तेषंति णेणं भगवया, अहवा आउसंतेण-जीक्ता कहितं, अहवा आवसंतेण गुरुरांग सूत्र | कुलवास, अहवा आउसंतेण सामिपादा, विणयपुब्बो सिस्सायरियकमो दरिसियो होइ आवसंतआउसंतग्गहणेण, भग इति जो| चूर्णिः सो भण्णइ सो से अस्थि तेण भगवं 'माहात्म्यस्य समग्रस्य, रूपस्य यशसः श्रियः । धर्मस्याथ प्रयत्नस्य, पण्णां भग इती-IYA ॥९॥ | गणा ||१|| भगवद्गहणं तु सत्थगोवत्थं धम्मायरियत्ति सिस्सायरियकमे मंगलत्थं च 'इह' इति प्रवचने आयारे वा सत्थपरिण| ज्झयणे वा 'एगेसिं'ति ण सम्बेसि, अमानोना पडिसेहे, एत्थ जगारमागारनगारा सनपडिसेहगया, णोगारो तु देशे सब्वे यDI TA अधिगारं असम, तंजहा-नोगाम इति भण्णंते सुण्णगामो घेप्पड़, णवनिवासो वा, ण ताव आंबासेति, अग्गामोतिण भण्णति, जो | | वा ग्रामस्य देशो एसो नोगामो, सब्बपडिसेहे अरण्णा मेव, इह तु देशपडिसेहे ददुव्बो, जेण न कोऽपि संसारत्थो जीवो सबारहितो, भणियं च "संसारस्थाणं दस सण्णाओ पण्णचाओ, तंजहा-आहारसण्णा भय० मेहुण० परिग्गहरू कोह० माण० माया लोभ लोग० ओघसण्णा, जेण पुढविकाइयाणवि अक्खरस्स अणतभागो णिच्चुग्घाडो तेण ण कोइ जीवो सण्णारहिओ, अतो नोकारेण पडिसेहो, 'एगेसिं'ति मणुस्साणं, जेण मणुस्सेसु चरिचपडिपत्ती, सण्णा चउबिहा 'दवे सञ्चित्तादी गाहा (३८-१२) संजागणं संज्ञा, जो हि जेण सचिनेण ३ दब्वेग दव्यं संजाणइ सा दबसण्णा जहा बलागादीहिं सलिलं, जहा वा भमुगाअंगुलिय नयणवयणमादिएहिं आगारेहि सणं करेइ जहा गच्छ चिट्ठ पद भुंज एवमादि चेयणा जहा अक्वेहि दाएति, लद्धीए व सि॥ स्सस्स, जहा उजोतणियाए पदीवेण दरिसेइ, भावसना अणुभवणा जाणणे व 'मह होति जाणणाए' मई सण्णा णाणं एगत्था, सा सण्णा पंचविहा, तंजहा-आमिणिबोहियनाणसना सुयनाणसन्ना ओहिनाण. मणपजमाणसमा केवलणाणसण्णा, सा पुण| दीप अनुक्रम [१-१२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [13]Page Navigation
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