Book Title: Aagam 01 ACHAR Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 10
________________ आगम (०१) “आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [१], उद्देशक [१], नियुक्ति: [१-६७], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १-१२] श्रीआचा- चूर्णिः प्रत वृत्यंक [१-१२] जाया अणस्सिता गिहवइणो जाया, जया अग्गी उप्पण्णो ततो य भगवऽस्मिता सिप्पिया वाणियगा जाया, तेहिं तेहि क्षत्रियासिप्पवाणिज्जेहिं विर्ति विसंतीति बइम्सा उप्पना, भगवए पवइए भरहे अमिसित्ते सावगधम्मे उप्पण्णे बंभणा जाया, अगस्सिता बंभणा जाया माहणत्ति, उज्जुगसभावा धम्मपिया जं च किंचि हणतं पिच्छति तं निवारंति मा हण भो मा हण, एवं ते || जणेणं सुकम्मनिवत्तितसम्मा भणा(माहणा)जाया, जे पुण अणस्सिया असिप्पिणो ते वयख(क)लासुइबहिका तेसु तेसु पोयणेसु सोयमाणा हिंसाचोरियादिसु सजमाणा मोगद्रोहणसीला सुद्दा संवुत्ता, एवं तावं चत्तारिवि वण्णा ठाविता, सेसाओ संजोएणं, तत्थ 'संजोए सोलसयं' गाहा (२०-८) एतेसिं चेव च उण्हं वण्णाणं पुवाणुपुवीए अणंतरसंजोएणं अण्णे तिण्णि वण्णा भवंति, तत्थ 'पपती चउकयाणंतरे' गाहा (२१-८) पगती णाम भवत्तियवाससुद्दा चउरो वण्णा । इदाणि अंतरेण-बंभोणं । खत्तियाणीए जाओ मो उत्तमवनियो वा मुद्धखतिओ वा अहया संकरखतिओ पंचमो वण्णो, जो पृण खत्तिएणं वहस्सीए जाओ, एसो उत्तमयस्सो वा सुदवहस्सो वा संकरवहस्सो वा छट्ठो वण्णो, जो वइस्सेण मुद्दीए जातो सो उत्तमसुदो वा (सुद्धसुद्दो) वा संकरसुद्दो वा सत्तमो वण्णो । इदाणि वण्णणं वण्णेहिं वा अंतरितो अणुलोमओ पडिलोमतो य अंतरा सत्त वण्णंतरया भवंति, जे अंतरिया ते एगंतरिया दुअंतरिया भवति । चत्वारि गाहाओ पढियवाओ (२२,२३, २४, २५-१) तत्थ ताव भणेणं वइस्सीए H जाओ अंबट्ठोत्ति बुचड़ एसो अट्ठमो वण्णो, खत्तिएणं सुद्दीए जातो उग्मोत्ति वुचइ एसो नवमो वण्णो, बंभणेण सुद्दीए निसातोत्ति वुचर, किनिपारासबोत्ति, तिण्णि गया, दसमो वण्णो । इदाणिं पडिलोमा भण्णंति-सुदेण वइस्सीए जाओ अउगवुत्ति भण्णइ, 0 एकारसमो वण्णो, वइस्सेण खत्तियाणीए जाओ मागहोनि भण्णइ, दुवालसमो, खत्तिएणं बंभणीए जाओ नोत्ति भण्णति, तेरसो | दीप अनुक्रम [१-१२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: ...मनुष्यजाती/वर्ण एवं वर्णान्तरम् [१]

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