Book Title: Aadinath Charitra
Author(s): Pratapmuni
Publisher: Kashinath Jain Calcutta

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Page 5
________________ ~ ( २ ) विधियाँ दी हुई हैं। इन चारों अनुयोगों पर बहुतसे सूत्रों और ग्रन्थोंकी रचना हुई है । इनमें से बहुतेरे तो नष्ट हो चुके हैं तो भी अभीतक बहुत से जैन ग्रन्थ मौजूद हैं, जिनमें किसीमें तो एक और किसी-किसीमें एक से अधिक अनुयोगोंका विवेचन किया गया है. | 1 वर्त्तमान ग्रन्थ चरितानुयोगका है। इस तरह के ग्रन्थोंसे साधारण व्यक्तियोंसे लेकर विद्वान् तक एक समान लाभ उठा सकते हैं। सब मनुष्यों का बुद्धिबल एकसी काम नहीं कर सकता । ख़ास करके द्रव्यानुयोगके गहन विषयोंको तो सर्वसाधारण भली भाँति समझ भी नहीं पाते इसके विपरीत कथा-कहानियों में सबका जी लगता है। बड़े-बड़े पण्डितोंसे लेकर गई-गाँवके रहनेवाले अनपढ़ किसान तक कथा-कहानी कहते, सुनते और पढ़ते हैं । प्रायः देखा जाता है, कि कोई धार्मिक या राजनीतिक व्याख्यान सुनकर घर लौटने पर उसकी कुल बातें मुश्किलसे ही याद रहती हैं; लेकिन कहीं से कोई कथा सुनकर आओ, तो रातको दल- पाँच आदमियों को तुम स्वयं उसकी आवृत्ति करके सुना सकते हो | मनुष्य-स्वभावका परिचय रखनेवाले शास्त्रकारोंने यही देखकर इससे लाभ उठानेका तरीका निकाला और कथाके छलसे धर्म, ज्ञान, व्यवहार, नीति, चारित्र सम्बन्धी जीवनको उत्तम बनानेवाले नियमोंको मनुष्य समाज में प्रचारित करना आरम्भ किया। बड़े-बड़े महात्माओं और महापुरुषोंने किस ढंग से जीवन व्यतीत कर संसार में सब तरह के सुख पाये, किन-किन {

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